लव-लैटर्स काका-काकी के
5 जुलाई,1925
आगरे की लली
मेरे दिल की कली,
यह पत्र लिखते हुए हृदय में उथल-पुथल हो रही है,
जैसे इम्तहान के कमरे में जाते हुए हमारी हुई थी।
दिल धक्-धक् कर रहा है।
कलम काँप रही है और इस पत्र को बाँचकर तुम क्या सोचोगी,
अक्ल यह नाप रही है। कहीं नाराज़ हो गईं तो सब गुड़-गोबर हो जाएगा।
फिर भी लिखे बिना दिल नहीं मानता।
कल बगीची से डंड पेलकर घर आए तो देखा कि बैठक में चार-पाँच आदमी बैठे हुए हैं। उनको सूँघने पर पता चला कि पीली पगड़ी वाले तो थे तुम्हारे मामा,
काली टोपी वाले नाई ठाकुर थे और टोपा वाले पता नहीं कौन थे।
जैसे ही हम कमरे में दाखिल हुए, बातचीत एकदम बंद हो गई।
हमारे मामा ने फुदककर कहा, ‘लो जी यह है लड़का।’ हमारा हृदय धड़का।
मामा बड़े प्यार से बोले,‘सबको राम-राम करो,
ये सब आगरे से आए हैं।’
आगरे का नाम सुनते ही दालमोठ और पेठा दिखाई देने लगे।
हमें क्या पता था कि आगरे का संबंध तुमसे भी है।
खैर सब घूर-घूरकर हमें ऐसे देखने लगे,
जैसे कोई पेटू हलवाई की दुकान पर खड़ा बालूशाइयों को देखता है।
कोई हमारे मुँह की ओर देख रहा था, कोई हाथ की तरफ़, कोई पैरों की तरफ़।
हमारे शरीर पर जहाँ-तहाँ लगी हुई थी अखाड़े की मिट्टी और गुम हो रही थी सिट्टी-पिट्टी। टोपा वाले बोले, ‘यह क्या बेटा, जगह-जगह खुजली हो गई है ?
’ हमने मिट्टी झाड़कर कहा, ‘अभी-अभी अखाड़े से कुश्ती लड़कर आए हैं।’
नाई ने पूछा, ‘कितनी दंड पेलते हो लाला ?’
हमने कहा, ‘चार सौ बीस सुबह, चार सौ बीस शाम।’
और क्या करते हो काम ?’
हमारे मामा बीच में ही बोल उठे, ‘अजी बड़ी ऊँची जगह काम करता है।
’ फिर हमसे कुछ सीधे सवाल तुम्हारे नाई ने किए।
हमने कविता में उत्तर दिए।
हम यहाँ उन प्रश्नोत्तरों को इसलिए लिख रहे हैं
कि तुम अपनी सखी-सहेलियों को बता सको कि हम कविता भी करते
सबसे पहला प्रश्न था-तुम्हारी उम्र कितनी है लल्लू ?
हमारा उत्तर :
ठीक उम्र तो जानते हैं केवल माँ-बाप,
वैसे लगभग बीस है, समझ लीजिए आप।
दूसरा प्रश्न : कितने पढ़े हो अब तक ?
हमारा उत्तर :
जहाँ तक पढ़ाया, वहाँ तक पढ़े हैं,
एक-एक दर्जा में दो-दो बार चढ़े हैं।
प्रश्न : एक बात और बताओ लाला ! बुरा मत मानना। तुम्हारी आँखों में काजल कौन लगाता है, अम्मा या मामी ?
उत्तर :
अम्मा या मामी कभी, काजल नहीं लगाए,
अंगुली काजल लगाती, फटाफट्ट लग जाए।
प्रश्न : कुछ भजन-पूजा भी करते हो ?
उत्तर :
माला जपते राम की, नित्य एक सौ आठ,
साठ बार हम कर चुके, रामायण का पाठ।
फिर तुम्हारे मामा पूछने लगे, ‘क्यों बेटा, तु्म्हें अपने पिताजी की कुछ याद है क्या ?’
हम बोले :
प्लेग पी गई पिता को, हमें नहीं कुछ याद,
मामी-मामा ने हमें, पाला उसके बाद।
अब टोपा वाले चहके : तनखा कितनी मिलती है, लल्लू ?
हमने उत्तर दिया :
रुपए ला ला दे रहे हर महीने पच्चीस,
जब हो जाए ब्याह तब, तक दें पूरे तीस।
फिर नाई मिमियाया : यारबास कितने हैं तुम्हारे ?
उत्तर:
किस-किस का लें नाम हम, यार बहुत दिलदार,
मारें सीटी एक तो, लंबी लगे कतार।
उस दिन जल्दबाजी में हमारे पायजामे का नाड़ा कुर्ते से नीचे लटका रह गया था तो नाई ने पूछा, ‘पाजामे का यह नाड़ा हर समय इसी तरह लटकाए रहते हो क्या ?’
हमने उत्तर दिया :
नाड़ा बहुत प्रसन्न है, रखो ताक पर लाज,
दर्शन करने आपके, लटक गया है आज।
सुनकर सब हँस गए। हमने अनुभव किया फँस गए।
पर नाई ठाकुर तो बड़े चतुर होते हैं। उनको यह बात कुछ चुभ गई और कहने लगे, ‘ठीक-ठीक जवाब दो कुँवरजी !
उल्टी-सीधी बात समझ में नहीं आती।’
हम फिर भी नहीं चूके और यह दोहा सुना दिया:
कविता चलती है सदा, आड़ी-तिरछी चाल,
जैसे नाई काटते, उल्टे-सीधे बाल।
यह बात भी नाई को चुभ गई हो तो तुम उन्हें मना लेना,
क्योंकि अभी उनसे बहुत काम निकालना
उन्होंने भाँजी मार दी, तो बना-बनाया बिगड़ जाएगा खेल।
फिर कैसे चढ़ेगा दूल्हा-दुलहन पर तेल !
और भी बहुत से प्रश्न तुम्हारे मामाजी ने पूछे।
हम उनके संतोषजनक जवाब देकर बाहर आ गए।
उन्हें विश्वास हो गया कि लड़का हकला नहीं है।
आवाज भी कड़कदार है। सूरत-सीरत भी ठीक-ठाक है।
वे संतुष्ट से दिखाई दिए तो हम चले आए।
फिर भी किवाड़ के पीछे खड़े होकर उनका निर्णय जानने के लिए उत्सुक हो रहे थे। हमारे जाने के बाद नाई ने तुम्हारे अंग-प्रत्यंग और सौंदर्य का मनोहारी चित्रखींचा।
जबसे यह वर्णन सुना है, तबसे
तुम्हारा चित्र बारंबार आँखों के सामने आता रहता है।
मन चाहता है कि तुम्हारी एक छटा दिख जाए
तो हृदय की मुरझाई हुई कली खिल जाए।
क्या ऐसा कोई साधन हो सकता है
कि हम ताजमहल देखने के बहाने अपनी ‘मुमताज’ को भी देख सकें ?
विश्वास रखो, हम वहाँ किसी से भी नहीं कहेंगे कि हम अमुक हैं।
खड़े-खड़े हमने तुम्हारे मामाजी के मुख से तुम्हारा नाम पहली बार सुना।
वे कह रहे थे-‘रतना के लिए यह लड़का ठीक रहेगा।’
वाह, क्या प्यारा नाम है रतना।
जैसे रत्नों का ढेर। फिर मन में विचार आया कि तुलसीदास की रत्नावली
तुलसीदास को बहुत फटकारा करती थी,
कहीं ऐसी न हो ? और जब तुम्हारे मामाजी ने
बेलनगंज में घर बताया तो कुछ कँपकँपी सी आई,
लेकिन अंतरात्मा बोली, ‘घबराओ, मत तात !
इसमें डरने की क्या बात।
पत्नी की फटकार से ही तो तुलसीदास विश्व में प्रसिद्ध हो गए।
विद्योत्मा के व्यंग्यवाणों से कालिदास महाकवि हो गए।
तुम्हारा भी फ्यूचर ब्राइट हो सकता है।’
प्यारी रतना ! थोड़ी-बहुत हम भी करते हैं काव्य-रचना।
भाँवरों के समय जब तुम्हारी मामी
तथा सखी-सहेलियाँ इकट्ठी होकर परिपाटी के अनुसार कहेंगी
कि लालाजी सिल्लोक (श्लोक) सुनाओ; तब देखना हमारा कमाल।
ऐसी-ऐसी तुकबंदी सुनाएँगे कि सबके गाल शर्म से हो जाएँगे लाल।
अब तो यही इच्छा है कि तुम्हारी
तथा तुम्हारी मामी की स्वीकृति मिल जाए तो मामला फिट हो जाए।
हमारा फोटो तुम्हारे मामाजी ले गए हैं
लेकिन बदले में तुम्हारा नहीं दे गए हैं।
कहने लगे-‘हमारे यहाँ लड़कियों के फोटो नहीं खिंचवाए जाते।’
खैर, तुम्हारा जो रूप-वर्णन नाई ने किया है,
उससे चौथाई भी निकला तो चलेगा।
अपने फोटो के बारे में एक बात और बतानी है
-फोटोग्राफर की भूल से हमारे बाएँ गाल पर एक छोटा-सा काला निशान आ गया है। उसे तिल मत समझ लेना। वास्तव में उस समय गाल पर एक मक्खी बैठ गई थी
यह फोटो हमने दाऊजी के मेले में चलते-फिरते फोटोग्राफर से चवन्नी में खिंचवायाथा।
एक अठन्नी वाला खिंचवाते तो मजा आ जाता।
तब वह मक्खी को उड़ाकर ही फोटो खींचता।
तुमसे क्यों छिपाएँ, मेले में गर्म जलेबी बन रही थीं।
दो पैसे की आठ जलेबी खाकर आए थे।
गाल पर जरा चाशनी जम गई होगी।
फिर मक्खी का भी क्या कसूर !
कोई ग़लत कल्पना नहीं करना हजूर !
अब इन फोटुओं की चर्चा छोड़ें
और कुछ ऐसा जुगाड़ लगाएँ कि हम तुम्हें देखें, तुम हमें देखो।
हाथ से हाथ न सही, आँखों से आँख मिल जाएँ।
हट जाएँ सब बीच से, दूरी की दीवार,
अब तो इच्छा है यही, हो प्रत्यक्ष दीदार।
मन नहीं कर रहा, फिर भी यह पत्र समाप्त कर रहे हैं।
कोई पढ़ न ले इसलिए अपने हाथों ही से लिफाफा बंद करके लैटरबक्स में डालने जा ते हैं ।
इस पत्र का उत्तर घर के पते पर न भेजकर दूकान के पते पर भेजना।
पता इस प्रकार है-
काका हाथरसी, द्वारा सेठ राधेप्रसाद पोद्दार।
नयागंज, हाथरस।
बड़ी बेकरारी से तुम्हारे पत्र की प्रतीक्षा करेंगे।
उत्तर नहीं मिलेगा, तब तक आहें भरते रहेंगे।
तुम्हारा होने वाला,
प्राणों से प्यारा, काका
पुनश्च: तुम्हारे मामा ने हमारे मामा से हमारी जन्म-कुंडली माँगी थी।
वे भेजेंगे या भूल जाएँगे, कहा नहीं जा सकता।
उन्हें क्या जल्दी है, जल्दी तो हमें है।
इस कुंडली को देखकर एक ज्योतिषी ने कहा था कि इस लड़के के लखपती होने का योग है और यह विद्वान बनेगा, क्योंकि ग्रह में बृहस्पति है। यह बात हम तुम्हें फाँसने के लिए नहीं लिख रहे, भगवान कसम, बिल्कुल फैक्ट है।