काका के हँसगुल्ल _ काका हाथरसी
अंग-अंग फड़कन लगे, देखा ‘रंग-तरंग’
स्वस्थ-मस्त दर्शक हुए, तन-मन उठी उमंग
तन-मन उठी उमंग, अधूरी रही पिपासा
बंद सीरियल किया, नहीं थी ऐसी आशा
हास्य-व्यंग्य के रसिक समर्थक कहाँ खो गए
मुँह पर लागी सील, बंद कहकहे हो गए
जिन मनहूसों को नहीं आती हँसी
पसंद हुए उन्हीं की कृपा से,
हास्य-सीरियल बंद हास्य-सीरियल बंद,
लोकप्रिय थे यह ऐसे श्री रामायण और महाभारत थे
जैसे भूल जाउ, लड्डू पेड़ा चमचम रसगुल्ले
अब टी.वी.पर आएँ काका के हँसगुल्ले