ए भाई, वोट डालते चलो _ काका हाथरसी
ए भाई ! वोट डालते चलो,
आगे ना देखो, पीछे भी, दाएँ न देखो, बाएँ भी
ऊपर भी नहीं, नीचे भी। ए भाई...।
पाँच-पाँच साल बाद आता ये चुनाव है,
ख्वाब है, तमन्ना है, दिल में भी तनाव है।
जान की एक बाजी है, आखिरी ये दाव है।
काम नहीं, दाम नहीं, सर्विस नहीं, धंधा नहीं।
हानि नहीं, लाभ नहीं, ये तो सेवा है। ए भाई...।
और प्यारे ! ये चुनाव जो दंगल है,
चुनाव जो कुश्ती है,
चुनाव जो किस्मत है,
पाँच-पाँच साल बाद, एक बार आता है।
बड़े को भी, छोटी को भी,
खरे को भी, खोटे को भी,
दुबले को भी, मोटे को भी,
पार्टी की एक जो टिकट पा जाता है
नेता बन जाता है, भाग्य खुल जाता है। ए भाई...।
घर-घर गली-गली, गाँव-गाँव, जहाँ हमारी जनता है
नेता को जनता के पास जाना पड़ता है,
लोगों के जूतों में झुक जाना पड़ता है।
सूखे वायदों को सब्ज़बाग दिखाना पड़ता है। ए भाई...।
कैसा ये करिश्मा है ? कैसा खिलवाड़ है,
चुनाव में किसी का, कौन वफादार है।
एक की कार में बैठ के जो आता है,
दूसरे के कैंप में फौरन घुस जाता है।
माल जिसका खाता है, पैसा जिससे पाता है,
गीत जिसका गाता है।
उसके ही हारने पर तालियाँ बजाता है। ए भाई....।
सेवा-भाव बचपन है, इलैक्शन जवानी है
पराजय बुढ़ापा है और इसके बाद
जीप नहीं, फोन नहीं, माइक नहीं, मंच नहीं,
माला नहीं, प्याला नहीं, कोठी नहीं, कार नहीं।
कुछ भी नहीं रहता है।
खाली-खाली समितियाँ, खाली-खाली सेमिनार
खाली-खाली डेरा है
सारा मुल्क अँधेरा है, ना मेरा है, ना तेरा है,
ऐ भाई....।