नयावर्ष ! हर्षोत्कर्ष _ काका हाथरसी
टा-टा कहकर रिटायर, हुआ नवासी वर्ष
स्वागत 90 का करें, पाएँ हर्षोत्कर्ष।
पाएँ हर्षोत्कर्ष, भेद-भावना भुलाएँ,
रंजोगम को छोड़, ठहाके नित्य लगाएँ।
स्वस्थ, सुखी, अलमस्ती से जिंदगी काटिए,
झुग्गी-झोंपड़ियों को भी मुस्कान बाँटिए।
नए वर्ष में प्राप्त हो, अंग-अंग नवरंग,
रूढ़िवादिता छोड़कर, चलो समय के संग।
चलो समय के संग, हिया से हिया मिलाओ,
छोड़ रार-तकरार, प्यार के दिये जलाओ।
हत्या-हिंसा, घृणा-द्वेष की खाई पाटो,
हाय-हाय तज वाह-वाह के नारे बाँटो।
हँसते-हँसते हो गए, काका तिरासी साल
भौंरा से भन्ना रहे, सिर पर काले बाल।
सिर पर काले बाल, बताएँ घर के भेदी,
काकी जी के बालों पर आ गई सफेदी।
क्या चिंता है, मज़े दे रहीं जुल्फ़ें व्हाइट,
घुप्प अँधेरी नाइट में भी मारें लाइट।
काकी काजल लगाकर, नैन-सैन मटकाए,
पत्थर दिल भी पिघलकर, प्यौर शहद बन जाए।
प्यौर शहद बन जाए, छिपाएँ क्यों हम तुमसे,
नई-नई कल्पना, नित्य मिलती हैं उनसे।
रूठ जाय दिलरूबा, मनौती करें मनाएँ,
बिल्ली के सम्मुख ‘काका’ चूहे बन जाएँ।