चन्द्रमा

चन्द्रमा – काका हाथरसी
काका हाथारासी'ल्यूना-पन्द्रह' उड़ गया,
चन्द्र लोक की ओरपहुँच गया लौटा नहीं मचा विश्व में शोरमचा विश्व में शोर,
सुन्दरी चीनी बालारहे चँद्रमा पर लेकर
खरगोश निरालाउस गुड़िया की चटक-मटकपर भटक गया
हैअथावा 'बुढ़िया के चरखे' में अटक गया
हैकहँ काका कवि, गया चाँद पर
लेने मिट्टीमिशन फैल हो गया
हो गयी गायब सिट्टीपहुँच गए
जब चाँद पर, एल्ड्रिन, आर्मस्ट्रोंगशायर- कवियों की हुई काव्य कल्पना
'रोंग'काव्य कल्पना
'रोंग', सुधाकर हमने जानेकंकड़-पत्थर मिले,
दूर के ढोल सुहानेकहँ काका कविराय,
खबर यह जिस दिन आईसभी चन्द्रमुखियों पर
घोर निरशा छाईपार्वती कहने लगीं,सुनिए भोलेनाथ !
अब अच्छा लगता नहीं 'चन्द्र' आपके माथ'चन्द्र' आपके माथ,
दया हमको आती हैबुद्धि आपकी
तभी 'ठस्स' होती जाती हैधन्य अपोलो !
तुमने पोल खोल कर रख दीकाकीजी ने 'करवाचौथ' कैंसिल कर
दीसुघड़ सुरीली सुन्दरी दिल पर मारे
चोटचमक चाँद से भी अधिक कर दे
लोटम पोटकर दे लोटम पोट,
इसी से दिल बहलाएँचंदा जैसी चमकें,
चन्द्रमुखी कहलाएँमेकप करते-करते
आगे बढ़ जाती हैअधिक प्रशंसा करो चाँद पर चढ़ जाती
हैप्रथम बार जब चाँद पर पहुँचे दो इंसानकंकड़ पत्थर
देखकर लौट आए श्रीमानलौट आए श्रीमान,
खबर यह जिस दिन आईसभी चन्द्रमुखियों पर घोर निरशा छाईपोल खुली चन्दा की,
परिचित हुआ ज़मानाकोई नहीं चाहती अब चन्द्रमुखी कहलानावित्तमंत्री से मिले,
काका कवि अनजानप्रश्न किया क्या चाँद पर रहते हैं
इंसानरहते हैं इंसान,
मारकर एक ठहाकाकहने लगे कि तुम बिलकुल बुद्धू हो
काकाअगर वहाँ मानव रहते,
हम चुप रह जातेअब तक सौ दो सौ करोड़ कर्जा ले आत