India rising to the occasion with Bhuvan
At a time when developed countries are even more hard-pressed to develop indigenous and ground-breaking technology to boost their growth against a stiff competition in claiming business from other competitors, Bhuvan’s development will be an advantage to India.
Times of India has quoted, ‘If Google Earth shows details down to 200 metre resolution on the surface and Wikimapia to 50 metres, Bhuvan will have image resolution down to 10 metre, which means you can easily see details up to a three floor high building and also add information.’
Megaleecher.net mentioned, ‘Bhuvan will provide multi-layered images with zoom levels up to 10 meters and images being updated every year.’
ISRO expects the service to be launched in next six months by March 2009, all the infrastructure and software required for the service is already in place. A prototype of Bhuvan should be ready by end of November.
IF YOUR MANAGEMENT HAS DECIDED TO SCREW YOU, THERE IS NO ESCAPE
Yama was waiting for this moment at the doorstep of death. He asks PVNR and Advani to go to HEAVEN. But, for Laloo, Yama had already decided that he should be sent to HELL.
Laloo is not at all happy with this decision.
He asks Yama as to why this discrimination is being made. All the three of them had served the public. Similarly, all took bribes, all misused public positions, etc. Then why the differential treatment?
He felt that there should be a formal test or an objective evaluation before a decision is made; and should not be just based on opinion or preconceived notions.
Yama agrees to this and asks all the three of them to appear for an English test.
PVNR is asked to spell " INDIA " and does it correctly.
Advani is asked to spell " ENGLAND " and he too passes.
It is Laloo's turn and he is asked to spell " CZECHOSLOVAKIA ".
Laloo protests that he doesn't know English. He says this is not fair and that he was given a tough question and thus forced to fail with false intent.
Yama then agrees to conduct a written test in Hindi (to give another chance assuming that Laloo should at least feel that Hindi would provide an equal platform for all three).
PVNR is asked to write "KUTTA BOLA BHOW BHOW ". He writes it easily and passes.
Advani is asked to write "BILLY BOLI MYAUN MYAUN". He too passes.
Laloo is asked to write "BANDAR BOLA GRRRRRR....." Tough one.
He fails again. Laloo is extremely unhappy.
Having been a student of history (which the other two weren't), he now requested for all the 3 to be subjected to a test in history Yama says OK but this would be the last chance and that he would not take any more tests.
PVNR is asked: "When did India get Independence ? ". He replied "1947" and passed.
Advani is asked "How many people died during the independence struggle?". He gets nervous. Yama asked him to choose from 3 options: 100,000 or 200,000 or 300,000. Advani catches it and says 200,000 and passes.
It's Laloo's turn now. Yama asks him to give the Name and Address of each of the 200,000 who died in the independence struggle.
Laloo accepts defeat and agrees to go to HELL.
Moral of the story:
IF YOUR MANAGEMENT HAS DECIDED TO SCREW YOU, THERE IS NO ESCAPE
saumitra soumitra 100mitra mitra hundred friends
२६ जनवरीकड़की
२६ जनवरीकड़की - काका हाथरसी
२६ जनवरीकड़की भड़की
मंहगाई भुखमरीचुप रहो आज है
छब्बीस जनवरीकल वाली रेलगाडी सभी आज आई
स्वागत में यात्रियों ने तालियाँ बजाई
नही गए नहीं डरे नही झिड़की सेदरवाज़ा बंद काका कूद गये
खिड़की सेखुश हो रेलमंत्री जी सुन कर खुशखबरीचुप रहो
आज है .......राशन के वासन लिए लाइन में खडे रहोशान
मान छोड़ कर आन पर अडे रहोनल में नहीं जल है
तो शोर क्यो मचाते होड्राई क्लीन कर डालो व्यर्थक्यो
नहाते होमिस्टर मिनिस्टर की
करते क्यो बराबरीचुप रहो आज है ...................छोड़ दो
खिलौने सब त्याग दो सब खेल कोलाइन में लगो
बच्चो मिटटी के तेल कोकागज़ खा
जाएंगी कापिया सब आपकीतो कैसे छपेंगी पर्चियां चुनाव कीपढ़ने में क्या रखा
है चराओ भेड़ बकरीचुप रहो .......................आज है २६ जनवरी- काका हाथरसी
दलबदलू-मायारामदिन
दलबदलू-मायारामदिन - काका हाथरसी
दलबदलू-मायारामदिन दूनी बढ़ने लगी,
जोड़-तोड़ की होड़स्वार्थ ने सिद्धांत का,
दिया झोंपड़ा फोड़दिया झोंपड़ा फोड़,
मिल गए अधिक दाम जीमिस्टर आयाराम,
बन गए ‘गयाराम’ जीकाका,
बढ़ते-बढ़ते ऊंचे दाम हो गए‘गयाराम’ कुछ दिन में ‘मायाराम’ हो गए।
एक हास्य कविता - दाढ़ी
दाढ़ी - काका हाथरसी
एक हास्य कविता - दाढ़ी
भारात के ऋषि मुनियों नें पाला था शान से,
जगमग थी ज्ञानियों पे दमकते गुमान से,
नानक से औ कबीर से तीरथ से धाम से,
पहचान जिसकी होती थी साधू के नाम से,
दे सकती थी जो श्राप ज़रा सी ही भूल पर,
सूरजमुखी की पंखुडी ज्यों आधे फूल पर,
मुखड़े पे जो होती थी बड़प्पन की निशानी,
केशों की सहेली खिले गालों की जवानी,
दिन रात लोग करते थे मेहनत बड़ी गाढ़ी,
तब जाके कहीं उगती थी इस चेहरे दाढ़ी,
दाढ़ी जो लहरती थी तो तलवार सी लगती,
हो शांत तो व्यक्तित्व के विस्तार सी लगती,
दाढ़ी तो दीन दुनिया से रहती थी बेख़बर,
करते सलाम लोग थे पर इसको देख कर,
दाढ़ी में हैं सिमटे हुए कुछ भेद भी गहरे,
सूरत पे लगा देती है ये रंग के पहरे,
दाढ़ी सफेद रंग की सम्मान पाएगी,
भूरी जो हुई घूर घूर घूरी जाएगी,
दाढ़ी जो हुई काली तो कमाल करेगी,
मेंहदी रची तो रंग लाल लाल करेगी,
दाढ़ी का रंग एक सा है छाँव धूप में,
सबको ही बांध लेती है ये अपने रूप में,
दाढ़ी के बिना चेहरा बियाबान सा लगे,
भूसी से बाहर आए हुए धान सा लगे,
दाढ़ी से रौब बढ़ता है ज़ुल्फों के फेर का,
दाढ़ी तो एक गहना है बबरीले शेर का,
चेहरे पे बाल दाढ़ी के जब आ के तने थे,
लिंकन भी तभी आदमी महान बने थे,
खामोश होके घुलती थी मौसम में खु़मारी,
शहनाई पे जब झूमती थी खान की दाढ़ी,'सत श्री अकाल' बोल के चलती थी कटारी,
लाखों को बचा लेती थी इक सिंह की दाढ़ी,
मख़मल सरीख़ी थी गुरु रविन्द्र की दाढ़ी,
दर्शन में डूब खिली थी अरविंद की दाढ़ी,
दिल खोल हंसाती थी बहुत काका की दाढ़ी,
लगती थी खतरनाक बड़ी राका ही दाढ़ी,
गांधीजी हमारे भी यदि दाढ़ी उगाते,
तो राष्ट्रपिता की जगह जगदादा कहाते,
ख़बरें भी छपती रहती हैं दाढ़ी के शोर की,
तिनका छिपा है आज भी दाढ़ी में चोर की,
उगती है किसी किसी के ही पेट में दाढ़ी,
पर आज बिक रही बड़े कम रेट में दाढ़ी,
सदियों की मोहब्बत का ये अंजाम दिया है,
आतंकियों नें दाढ़ी को बदनाम किया है,
करने को हो जो बाद में वो सोच लीजिए,
पहले पकड़ के इनकी दाढ़ी नोच लीजिए,
स्पाइस ओल्ड बेच रही टीवी पे नारी,
दाढ़ी की प्रजाति हो है ख़तरा बड़ा भारी,
गुम्मे पे टिका के कहीं एसी में बिठा के,
तारों की मशीनों से या कैंची को उठा के,
पैसा कमा रहे हैं जो दाढ़ी की कटिंग में,
शामिल हैं वो संसार की मस्तिष्क शटिंग में,
ब्रश क्रीम फिटकरी की गाडी़ बढ़ाइए,
फिर शान से संसार में दाढ़ी बढ़ाइए,
मैं आज कह रहा हूँ कल ये दुनिया कहेगी,
दाढ़ी महान थी, महान है, और रहेगी।
वकीलवकील करते
Happy Independence Day!!!
JAI HIN JA
JAI HIND JAI HI
JAI HIND JAI H
JAI HIND JAI HI
JAI HIND JAI
JAI HIND JAI
JAI HIND JAI
JAI HIND
JAI HIND J
JAI HIND JAI H
JAI HIND JAI HIN
JAI HIND JAI HIN JAI H
JAI HIND JAI HIND J JAI HIND J
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JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI JA JAI HIND JAI
JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI HIND J JA JAI HIND
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JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI HIND J JAI HIND JAI
JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI
JAI HI JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI HIN JAI HI
JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI H
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JAI HI JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI
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JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI HIND
JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI
JAI HIND JAI HIND JAI HIND JAI
JAI HIND JAI HIND JAI HIND J
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JAI HIND JAI HIND JAI HIN
JAI HIND JAI HIND JAI HI
JAI HIND JAI HIND JA
JAI HIND JAI HIND J
JAI HIND JAI HIN
JAI HIND JAI HIN
JAI HIND JAI HI
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JAI HIND JAI
JAI HIND JAI
JAI HIND JAI
JAI HIND
JAI HIN
JAI HI
JAI H
JAI
डॉक्टरप्रार्थना
चन्द्रमा
सोमरस पान - काका हाथरसी
कंट्रोल बनाम ब्लैककरते
कंट्रोल बनाम ब्लैक - काका हाथरसी
कंट्रोल बनाम ब्लैककरते हैं वे घोषणा,
बजा-बजाकर ढोलमूल्य अगर बढ़ते रहे,
कर देंगे कंट्रोलकर देंगे कंट्रोल
यही तो चाहे ‘लाला’धन्यवाद दें तुम्हें,
गले में डालें मालाकहं ‘काका’,
कर जोड़ प्रार्थना करता बंदाकरो नियंत्रण
तो चालू हो जाए धंधाधक्का देकर धर्म को,
धन की माला फेरचीनी बेची ब्लैक में,
छह रुपए की सेरछ्ह रुपे की सेर,
पकड़ थाने पहुंचाएकेस लड़ाए पांच सौ जुर्माना दे
आएकहं ‘काका’ जब हानि-लाभ का खाता
छांटादस हजार बच रहे, रहा क्या हमको घाटा।
काका हाथरसी जी- काका से क्षमायाचना सहित)
जलेबी
दादा पत्रकार - काका हाथरसी
दाढ़ी महिमा - काका हाथरसी
दाढ़ी महिमा - काका हाथरसी
तुम डार-डार, हम पात-पात
तुम डार-डार, हम पात-पात _ काका हाथरसी
महालेखापरीक्षक की रपट है गूढ़ ऐसी
गीता के श्लोक-जैसी।
पकड़कर वाक्य या श्लोक एक
अर्थ निकाल लीजिए अनेक।
राजीव को विपक्षी दोषी मान रहे हैं
पक्षी, पंखों का छाता तान रहे हैं।
बचाव की अहम् भूमिका निभा रहे हैं
कांग्रेसी संत
भगत जी और पंत।
वी.पी.सिंह दहाड़ रहे हैं,
देवीलाल मिसमिसा रहे हैं,
रामाराव विश्वामित्र बनकर
शाप देने आ रहे हैं।
क्या होगा भगवान
व्याकुल है धरती, आकुल है अंबर
जजमैंट देंगे मिस्टर दिसंबर।
आरती इक्कीसवीं सदी की
इक्कीसवीं सदी, मेरी मइया इक्कीसवीं सदीऽऽ,
तरस रहे तेरे स्वागत को ताल-तलैया-नदी।
हत्या-हिंसा-नफरत के आँसू बहते जिनमें,
तुम आओ तब, होय प्रवाहित अमृतरस उनमें।
‘काका’ करे आचमन तो भौंरा-से भन्नाए,
होय बुढ़ापा दूर, जवानी सन-सन सन्नाए।
नई जवानी, नई रवानी, नवजीवन पाएँ,
नई उमर की नई फसल की, काकी ले आएँ।
नागिन-सी लट लटकें चमकें हीरा-से झुमके,
काव्य-मंच पर श्रीदेवी-जैसे मारें ठुमके।
तीन ग़ज़ल, दो गीत नए काका से ले लेंगी,
कवयित्री बनकर, लाखों के नोट बटोरेंगी।
नहीं करेंगे हम कोई पैदा बच्चा-बच्ची,
सफल होय परिवार-नियोजन, नींद आए अच्छी
फिर भी बालक चाहें, तो विज्ञान मदद देगा,
कम्प्यूटर का बटन दबाओ, बच्चा निकलेगा।
गाँव-गाँव में स्थापित हों,स्वीस बैंक ऐसे,
चाहो जितने जमा करो, दो नंबर के पैसे।
किसका कितना धन है कोई बता नहीं पाएँ
मार-मारकर सर, सब आई.टी.ओ.थक जाएँ।
यह आरती अगर लक्ष्मी का उल्लू भी गाए,
प्रधानमंत्री का पद उसे फटाफट मिल जाए।
हास्य वर्णमाला
हास्य वर्णमाला
-अनार-
हो जाते हैं एक से, अच्छे सौ बीमार,
अच्छे सौ बीमार, मधुर मोती से दाने
कर देते हैं दूर रोग सब नए-पुराने
अन्ननास, अमरुद्ध और अंगूर लाइए
मित्र मंडली संग खाइए, गीत गाइए
-आम-
जिसने इनको बनाया उसको दाद दीजे उसको दाद,
दीजे उसको दाद, कचालू और रतालू
सब सब्जी का बाप बताया जाता आलू
कलमी-फज़ली आम दशहरी मन को भाएं
ओलम्पिक में लंगड़ा लम्बी दौड़
-इमली-
चीनी इसमें डालिए, बन जाएगी सोंठ,
बन जाएगी सोंठ, साथ हो गर्म कचौड़ी
दह बड़े के साथ, सुहाती सुघर पकौड़ी
करलीजे स्वीकार, कभी इंकार न करिए
सीमित भोजन करो, अधिक खाने से
तोड़ तोड़कर चूसते, बच्चे और जवान,
बच्चे और जवान, बड़े बूढे ललचाते
रस गन्ने का देकर उनकी प्यास बुझाते
इसके द्वारा चीनी गुड़ शंकर बन जाएं
देशी और विदेशी इसकी महिमा गाएं
पंचायती राज
पंचायती राज - काका हाथरसी
गाँव-गाँव में होय अब, पंचायत के राज,
काका कवि तो खुश हुए, काकी जी नाराज।
काकी जी नाराज फैसला गलत किया है,
महिलाओं को सिर्फ तीस परसैंट दिया है।
अर्धांगिनि है नारि, उन्हें समझाना होगा,
फिफ्टी-फिफ्टी आरक्षण दिलवाना होगा।
पंचायत स्वर्णिम सपन, जब तक हो साकार,
हँसी के गुब्बारे
हँसी के गुब्बारे
प्रश्न पुलिंदा-1 _ काका हाथरसी
‘एक सप्ताह की डाक का पुलिंदा लादकर लाए हैं हम, उठाकर तो देखो ?’
‘उठाकर तो तुमने देख लिया, हमको तो सुनाती चलो,
किसने क्या लिखा है, टेप रेकार्डर स्टार्ट कर दो।
हम उत्तर देते चलेंगे, टेप होते रहेंगे।
टाइपिस्ट आएगा, टाइप कर देगा।’
‘लेकिन यह मुसीबत क्यों पाल रखी है आपने ?’
‘मुसीबत मत समझो इसको डियर,
हम प्रश्नों के उत्तर कविता में देकर पाठकों की शंका करेंगे क्लियर,
फिर यह विविध भारती द्वारा प्रसारित होकर सारी दुनिया में फैल जाएँगे।
प्रश्नकर्ता प्रसन्न होकर हमारी-तुम्हारी जै-जैकार मनाएँगे।’
‘अच्छा जी, हो गई जै जैकार, तो सुनो यह पहिला प्रश्न है मेरठ से श्री...
‘ठहरो प्रश्नकर्ता का नाम -पता तो उसके पात्र में ही रहने दो,
तुम सिर्फ प्रश्न बोलती चलो, हम उत्तर देते चलें।’
मम्मी जी का मिल्क पिऊँगा, गिल्ली डंडा खेलूँगा।
नित्य नियम से बस्ता लेकर जाऊँगा मैं पढ़ने को
ओलंपिक में पहुँचूँगा मल्लों से कुश्ती लड़ने को।
हँसी खुशी के गीत सुनाकर सबका मन बहलाऊँगा,
इसी कला से काका वाला पुरस्कार पा जाऊँगा।
स्वाद चाखना होय तो कभी हाथरस आयँ।
कभी हाथरस आयँ, उपाय और है दूजा
अपने ही घर में करवा लो बेलन पूजा।
क्वांरे हो तो बहू मरखनी लेकर आओ
फिर कविताएँ लिखो धड़ाधड़ कवि बन जाओ।
टिकटार्थी-प्रार्थी
टिकटार्थी-प्रार्थी _ काका हाथरसी
टिकट झपटने के लिए, उछल रहे श्रीमान,
विजयश्री हो प्राप्त तो, मिले मान-सम्मान।
मिले मान-सम्मान, पार हो जाए नैया,
श्रद्धा से आरती उतारें चमचा भैया।
जिनकी पॉकिट से पलते, लठैत भतखौआ,
उनसे हारें हंस, सफल हो जाएँ कौआ।
यार सप्तक
मॉर्डन रसिया
चरबी वारौ ‘बटर’ मिलैगो फ्रिज में, हे बनवारी
आधी टिकिया मुख लिपटाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
मटकी रीती पड़ी दही की, बड़ी अजब लाचारी,
सपरेटा कौ दही मिलैगो कप में, हे बनवारी
छोटी चम्मच भर कै खाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
नंदन वन के पेड़ कट गए, बने पार्क सरकारी
‘ट्विस्ट’ करत गोपियाँ मिलैंगी जिनमें, हे बनवारी
‘‘संडे’ के दिन रास रचाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
जमना-तट सुनसान, मौन है बाँसुरिया बेचारी
गूँजत मधुर गिटार मिलैगो ब्रज में, हे बनवारी
फिल्मी डिस्को ट्यून सुनाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
सुखे ब्रज के ताल, गोपियाँ ‘स्विमिंग-पूल’ बलिहारी
पहने ‘बेदिंग सूट’ मिलैंगी जल में, हे बनवारी
उनके कपड़े चुस्त चुराय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
‘रॉकेट’ बन उड़ गई चाँद पर रंग-भरी पिचकारी
गोपिन गोबर लिए मिलैंगी कर में, हे बनवारी
मुखड़ौ होली पै लिपवाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
सूनौ पनघट, फूटी गगरी, मेम बनी ब्रजनारी
जूड़ौ गुंबद-छाप मिलौंगो सिर पै, हे बनवारी
दरसन कर कै, प्यास बुझाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
नयावर्ष ! हर्षोत्कर्ष
नयावर्ष ! हर्षोत्कर्ष _ काका हाथरसी
टा-टा कहकर रिटायर, हुआ नवासी वर्ष
स्वागत 90 का करें, पाएँ हर्षोत्कर्ष।
पाएँ हर्षोत्कर्ष, भेद-भावना भुलाएँ,
रंजोगम को छोड़, ठहाके नित्य लगाएँ।
स्वस्थ, सुखी, अलमस्ती से जिंदगी काटिए,
झुग्गी-झोंपड़ियों को भी मुस्कान बाँटिए।
नए वर्ष में प्राप्त हो, अंग-अंग नवरंग,
रूढ़िवादिता छोड़कर, चलो समय के संग।
चलो समय के संग, हिया से हिया मिलाओ,
छोड़ रार-तकरार, प्यार के दिये जलाओ।
हत्या-हिंसा, घृणा-द्वेष की खाई पाटो,
हाय-हाय तज वाह-वाह के नारे बाँटो।
हँसते-हँसते हो गए, काका तिरासी साल
भौंरा से भन्ना रहे, सिर पर काले बाल।
सिर पर काले बाल, बताएँ घर के भेदी,
काकी जी के बालों पर आ गई सफेदी।
क्या चिंता है, मज़े दे रहीं जुल्फ़ें व्हाइट,
घुप्प अँधेरी नाइट में भी मारें लाइट।
काकी काजल लगाकर, नैन-सैन मटकाए,
पत्थर दिल भी पिघलकर, प्यौर शहद बन जाए।
प्यौर शहद बन जाए, छिपाएँ क्यों हम तुमसे,
नई-नई कल्पना, नित्य मिलती हैं उनसे।
रूठ जाय दिलरूबा, मनौती करें मनाएँ,
बिल्ली के सम्मुख ‘काका’ चूहे बन जाएँ।
कलयुगी द्रौपदी
कलयुगी द्रौपदी - काका हाथरसी
काकी से की प्रार्थना, नवा-नवाकर शीश,
प्रिये, हमें दे दीजिए रुपे चार सौ बीस।
रूपे चार सौ बीस, आज जूआ खेलेंगे,
यह संख्या बलवान, शर्तिया हम जीतेंगे।
लगा दिए वे रुपये, एक दाव पर सारे,
दुगुने आए लौट, हौसले बढ़े हमारे।
साहस आगे बढ़ा, दाँव-पर-दाँव लगाए,
हार गए सब, घर आए मुँह को लटकाए।
काकी बोलीं- क्या हुआ, कैसे बीती रात,
कितने आए जीतकर, सच-सच बोलो बात ?
सच-सच बोलो बात, सुनाया संकट उनको,
जीत भाड़ में गई, हार बैठे हम तुमको।
सुनकर देवी जी ने मारा एक ठहाका,
मुझे द्रौपदी समझा है क्या तुमने काका ?
घबराओ मत चिंता छोड़ो, पीओ-खाओ
जीत गए जो कौरव, उनके पते बताओ !
तन-मन व्याकुल हो रहा, क्या होगा रघुनाथ,
लेकर बेलन हाथ में, चलीं हमारे साथ।
चलीं हमारे साथ, देख बूढ़ी रणचंडी,
कौरव-दल की सारी जीत हो गई ठंडी।
दु:शासन जी बोले, क्षमा कीजिए हमको,
यह कलयुगी द्रौपदी, रहे मुबारक तुमको।
काकी बोलीं-यों नहिं पीछा छोड़ूँ भइए,
लौटाओ सब इनसे जीते हुए रुपइए।
संगीन नेता : रंगीन दोहे
संगीन नेता : रंगीन दोहे _ काका हाथरसी
चहुँदिशि उड़ें विमान में, इंकापति राजीव,
अगले आम चुनाव की, जमा रहे हैं नींव।
जिताएँ समाज सेवी, व्यर्थ निकली श्रीदेवी !
करुणानिधि का करुणरस, बदल बन गया हास,
तमिलनाडु में शेष रस, रक्खे अपने पास।
करेंगे नवरस पूरे, न समझो स्वप्न अधूरे !
चंडी चुरहट लाटरी, चाट गई सब खीर,
फड़क रहे गांडीव में, अर्जुनसिंह के तीर।
खोट करते हैं पुत्तर, बापजी क्यों दें उत्तर ?
धीरे-धीरे लग रही, वी.पी.सिंह की हाट,
कब प्रधानमंत्री बनें, देख रहे हैं बाट।
घोषणा कर डाली है, विकल्प जनता-दल ही है !
कहें चंद्रशेखर, रहें सत्ता से हम दूर,
जनता-दल की बेल के, खट्टे हैं अंगूर।
सिंह जी भरकम भारी, दाल नहिं गले हमारी !
कमलापति राजीव को, चिट्ठी लिखते रोज,
पट्ठे उनके कर रहे, पोस्टमैन की खोज।
नहीं कुछ उत्तर आता, बुढ़ापा बढ़ता जाता !
भजनलाल के भजन से, बजें भवन में ढोल
बेटा देवीलाल के, खोल रहे हैं पोल।
वित्त विवरण नहिं देंगे, विरोधी क्या कर लेंगे !
भगत सरीखा जगत में, कौन मिलेगा व्यक्ति,
दिल्ली की किल्ली हिले, दिखलाए जब शक्ति।
दंडवत करते लाला, देखकर चश्मा काला !
बूटासिंह के बूट पर, मक्खन मलिए आप,
कष्ट दूर हो जाएँगे, नष्ट होएँ सब पाप।
कृपा जिसने पाई जी, बन गए डी.आई.जी. !
दिल्ली में रैली हुई, पीड़ित हुए किसान,
टिक नहिं सके टिकैत जी, फ़ेल हो गया प्लान।
दिखाते रहते मुक्का, सामने रखकर हुक्का !
अटलबिहारी अनमने, एकल करें निवास,
अब इनको डाले नहीं, कोई सुमुखी घास।
प्रगति गति ढुलमुल-सी है, भाजपा व्याकुल-सी है !
ए भाई, वोट डालते चलो
ए भाई, वोट डालते चलो _ काका हाथरसी
ए भाई ! वोट डालते चलो,
आगे ना देखो, पीछे भी, दाएँ न देखो, बाएँ भी
ऊपर भी नहीं, नीचे भी। ए भाई...।
पाँच-पाँच साल बाद आता ये चुनाव है,
ख्वाब है, तमन्ना है, दिल में भी तनाव है।
जान की एक बाजी है, आखिरी ये दाव है।
काम नहीं, दाम नहीं, सर्विस नहीं, धंधा नहीं।
हानि नहीं, लाभ नहीं, ये तो सेवा है। ए भाई...।
और प्यारे ! ये चुनाव जो दंगल है,
चुनाव जो कुश्ती है,
चुनाव जो किस्मत है,
पाँच-पाँच साल बाद, एक बार आता है।
बड़े को भी, छोटी को भी,
खरे को भी, खोटे को भी,
दुबले को भी, मोटे को भी,
पार्टी की एक जो टिकट पा जाता है
नेता बन जाता है, भाग्य खुल जाता है। ए भाई...।
घर-घर गली-गली, गाँव-गाँव, जहाँ हमारी जनता है
नेता को जनता के पास जाना पड़ता है,
लोगों के जूतों में झुक जाना पड़ता है।
सूखे वायदों को सब्ज़बाग दिखाना पड़ता है। ए भाई...।
कैसा ये करिश्मा है ? कैसा खिलवाड़ है,
चुनाव में किसी का, कौन वफादार है।
एक की कार में बैठ के जो आता है,
दूसरे के कैंप में फौरन घुस जाता है।
माल जिसका खाता है, पैसा जिससे पाता है,
गीत जिसका गाता है।
उसके ही हारने पर तालियाँ बजाता है। ए भाई....।
सेवा-भाव बचपन है, इलैक्शन जवानी है
पराजय बुढ़ापा है और इसके बाद
जीप नहीं, फोन नहीं, माइक नहीं, मंच नहीं,
माला नहीं, प्याला नहीं, कोठी नहीं, कार नहीं।
कुछ भी नहीं रहता है।
खाली-खाली समितियाँ, खाली-खाली सेमिनार
खाली-खाली डेरा है
सारा मुल्क अँधेरा है, ना मेरा है, ना तेरा है,
ऐ भाई....।
आरती : रिश्वतरानी की
आरती : रिश्वतरानी की _ काका हाथरसी
जय रिश्वत रानी, मैया जय रिश्वत रानी।
तेरी महिमा से परिचित, सब ज्ञानी-अज्ञानी।।
नाम अनेकों, रूप बहुत, क्या कैसे कह पाएँ।
शेषनाग थक जाएँ, लेखनी आँसू टपकाएँ।।
भेंट, दलाली, नज़राना, बख़्शिश या हक-पानी।
देकर सुविधा-शुल्क, प्राप्त हो सुविधा मनमानी।।
भारत-भू पर, कोई कोना, नहीं दिखा ऐसा।
काम सफल हो जाए जहाँ पर, बिना दिए पैसा।।
ऐप्लीकेशन जिनकी नहिं, नंबर पर चढ़ पाती।
दे देते जो गिफ़्ट, लिफ़्ट झट उनको मिल जाती।।
कोर्ट कचहरी, न्यायालय में जड़ तेरी गहरी।
ईंट-ईंट से निकल रही, रिश्वत की स्वरलहरी।।
सौ-पचास का नोट, पिऊन की पॉकिट में धर दो।
कहो कान में, अमुक केस की फ़ाइल गुम कर दो।।
रेल-मेल में भीड़-भड़क्का, धकापेल-धक्का।
प्लेटफ़ार्म पर खड़े-खड़े, टिपियाते कवि कक्का।।
गार्ड साब ने मारी-सीटी, तब टी.टी. आया।
रुपए बीस दिए जिसने, उसने स्लीपर पाया।।
वेटिंग वालों से दस-दस लें, गायब हो जाएँ।
ड्रैस बदलकर, फ़र्स्ट-क्लास कूपे में सो जाएँ।।
होली पर ससुराल गए, तो पड़े व्यंग्य-कोड़े।
‘फगुआ’ रूपी रिश्वत लेकर, साली ने छोड़े।।
रिश्वत रानी की आरति, जो श्रद्धा से गाए।
होय अँगूठा छाप, नामवर नेता बन जाए।।
लव-लैटर्स काका-काकी के
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