डॉक्टरप्रार्थना


डॉक्टरप्रार्थना - काका हाथरसी



डॉक्टर की प्रार्थनाडाक्टर बोले,

प्रभु करें ऐसी कुछ तजबीज,

अस्पताल में भीड़ हो,

क्यू में लगें मरीज।

क्यू में लगें मरीज,

वायु में होय प्रदूषण,

रोगों के कीटाणु, नित्यप्रति करें आक्रमण।

औषधि खाकर रोगी आत्मिक लाभ उठाएँ,

मर्ज रहे न मरीज, स्वर्ग को सीधे जाएँ।

चन्द्रमा

चन्द्रमा – काका हाथरसी
काका हाथारासी'ल्यूना-पन्द्रह' उड़ गया,
चन्द्र लोक की ओरपहुँच गया लौटा नहीं मचा विश्व में शोरमचा विश्व में शोर,
सुन्दरी चीनी बालारहे चँद्रमा पर लेकर
खरगोश निरालाउस गुड़िया की चटक-मटकपर भटक गया
हैअथावा 'बुढ़िया के चरखे' में अटक गया
हैकहँ काका कवि, गया चाँद पर
लेने मिट्टीमिशन फैल हो गया
हो गयी गायब सिट्टीपहुँच गए
जब चाँद पर, एल्ड्रिन, आर्मस्ट्रोंगशायर- कवियों की हुई काव्य कल्पना
'रोंग'काव्य कल्पना
'रोंग', सुधाकर हमने जानेकंकड़-पत्थर मिले,
दूर के ढोल सुहानेकहँ काका कविराय,
खबर यह जिस दिन आईसभी चन्द्रमुखियों पर
घोर निरशा छाईपार्वती कहने लगीं,सुनिए भोलेनाथ !
अब अच्छा लगता नहीं 'चन्द्र' आपके माथ'चन्द्र' आपके माथ,
दया हमको आती हैबुद्धि आपकी
तभी 'ठस्स' होती जाती हैधन्य अपोलो !
तुमने पोल खोल कर रख दीकाकीजी ने 'करवाचौथ' कैंसिल कर
दीसुघड़ सुरीली सुन्दरी दिल पर मारे
चोटचमक चाँद से भी अधिक कर दे
लोटम पोटकर दे लोटम पोट,
इसी से दिल बहलाएँचंदा जैसी चमकें,
चन्द्रमुखी कहलाएँमेकप करते-करते
आगे बढ़ जाती हैअधिक प्रशंसा करो चाँद पर चढ़ जाती
हैप्रथम बार जब चाँद पर पहुँचे दो इंसानकंकड़ पत्थर
देखकर लौट आए श्रीमानलौट आए श्रीमान,
खबर यह जिस दिन आईसभी चन्द्रमुखियों पर घोर निरशा छाईपोल खुली चन्दा की,
परिचित हुआ ज़मानाकोई नहीं चाहती अब चन्द्रमुखी कहलानावित्तमंत्री से मिले,
काका कवि अनजानप्रश्न किया क्या चाँद पर रहते हैं
इंसानरहते हैं इंसान,
मारकर एक ठहाकाकहने लगे कि तुम बिलकुल बुद्धू हो
काकाअगर वहाँ मानव रहते,
हम चुप रह जातेअब तक सौ दो सौ करोड़ कर्जा ले आत

सोमरस पान - काका हाथरसी


सोमरस पान - काका हाथरसी


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भारतीय इतिहास का,


कीजे अनुसंधान देव-दनुज-किन्नर सभी,
किया सोमरस पान किया सोमरस पान,
पियें कवि, लेखक, शायर जो इससे बच जाये,
उसे कहते हैं 'कायर' कहँ 'काका',
कवि 'बच्चन' ने पीकर दो प्याला दो घंटे में लिख डाली,
पूरी 'मधुशाला' भेदभाव से मुक्त यह,
क्या ऊँचा क्या नीच अहिरावण पीता इसे,
पीता था मारीच पीता था मारीच,
स्वर्ण- मृग रूप बनाया पीकर के
रावण सीता जी को हर लाया
कहँ 'काका' कविराय, सुरा की करो न निंदा
मधु पीकर के मेघनाद पहुँचा किष्किंधा
ठेला हो या जीप हो,
अथवा मोटरकार ठर्रा पीकर छोड़ दो,
अस्सी की रफ़्तार अस्सी की रफ़्तार,
नशे में पुण्य कमाओ जो आगे आ जाये,
स्वर्ग उसको पहुँचाओ पकड़ें यदि सार्जेंट,
सिपाही ड्यूटी वाले लुढ़का दो उनके भी मुँह में,
दो चार पियाले पूरी बोतल गटकिये,
होय ब्रह्म का ज्ञान नाली की बू,
इत्र की खुशबू एक समान खुशबू
एक समान, लड़्खड़ाती जब जिह्वा 'डिब्बा' कहना चाहें,
निकले मुँह से 'दिब्बा' कहँ 'काका' कविराय,
अर्ध-उन्मीलित अँखियाँ मुँह से बहती लार,
भिनभिनाती हैं मखियाँ प्रेम-वासना रोग में,
सुरा रहे अनुकूल सैंडिल-चप्पल-जूतियां,
लगतीं जैसे फूल लगतीं जैसे फूल, धूल झड़ जाये
सिर की बुद्धि शुद्ध हो जाये,
खुले अक्कल की खिड़की प्रजातंत्र में बिता रहे
क्यों जीवन फ़ीका बनो 'पियक्कड़चंद',
स्वाद लो आज़ादी का
एक बार मद्रास में देखा जोश-ख़रोश बीस पियक्कड़ मर गये,
तीस हुये बेहोश तीस हुये बेहोश,
दवा दी जाने कैसी वे भी सब मर गये,
दवाई हो तो ऐसी चीफ़ सिविल सर्जन ने केस कर दिया
डिसमिस पोस्ट मार्टम हुआ, पेट में निकली 'वार्निश'

कंट्रोल बनाम ब्लैककरते

कंट्रोल बनाम ब्लैक - काका हाथरसी

कंट्रोल बनाम ब्लैककरते हैं वे घोषणा,

बजा-बजाकर ढोलमूल्य अगर बढ़ते रहे,

कर देंगे कंट्रोलकर देंगे कंट्रोल

यही तो चाहे ‘लाला’धन्यवाद दें तुम्हें,

गले में डालें मालाकहं ‘काका’,

कर जोड़ प्रार्थना करता बंदाकरो नियंत्रण

तो चालू हो जाए धंधाधक्का देकर धर्म को,

धन की माला फेरचीनी बेची ब्लैक में,

छह रुपए की सेरछ्ह रुपे की सेर,

पकड़ थाने पहुंचाएकेस लड़ाए पांच सौ जुर्माना दे

आएकहं ‘काका’ जब हानि-लाभ का खाता

छांटादस हजार बच रहे, रहा क्या हमको घाटा।

काका हाथरसी जी- काका से क्षमायाचना सहित)

प्रभू मेरे मै नहीं रिश्वत खाईन्जबरण



नोट भरे पाकिट में , करके हाथापाई। मोहि फंसाइके,सफा निकसि गयॊ,सेठ बड़ो हरजाई।भोजन-भजन कछू सुहावै, आई रही उबकाई।देउ दबाय केस को भगवन, कर लो आध बटाई।कहं काका तब बिहंसि प्रभू ने, लियो कंठ लपटाई।प्रभू मेरे मैं नहीं रिश्वत खाई। -कवि स्वर्गीय काका हाथरसी जी- काका से क्षमायाचना सहित)

जलेबी



जलेबी - काका हाथरसी


आए जब इंगलैंड से भारत - विलियम डंग,

खा कर गरम जलेबियाँडंग रह गए दंग,

बोले, "इसे कैसे बनाता,ताज्जुब है

रस भीतरकैसे घुस जाता"?

,बैरा बोला, "साहब,इसे आरटिस्ट बनाते,

बन जाती तो,इंजेक्शन से रस पहुँचाते।

दादा पत्रकार - काका हाथरसी

दादा पत्रकार - काका हाथरसी
पत्रकार दादा बने,
देखो उनके ठाठ,
कागज का कोटा झपट,
करे एक के आठ।करे एक के आठ,
चल रही आपाधापी,
दस हजार बतलायँ,
छपें ढाई सौ कापी।
विज्ञापन दे दो तो जय-जयकार कराएँ,
मना करो तो उल्टी-सीधी न्यूज छपाएँ।

दाढ़ी महिमा - काका हाथरसी


दाढ़ी महिमा - काका हाथरसी

काका‘दाढ़ी राखिए,


बिन दाढ़ी मुख सूनज्यों मंसूरी के बिना,


व्यर्थ देहरादूनव्यर्थ देहरादून,


इसी से नर की शोभादाढ़ी से ही प्रगति कर गए


संत बिनोवामुनि वसिष्ठ


यदि दाढ़ी मुंह पर नहीं रखातेतो


भगवान राम के क्या वे गुरू बन जातेशेक्सपियर,


बर्नार्ड शॉ, टाल्सटॉय, टैगोरलेनिन,


लिंकन बन गए जनता के सिरमौरजनता के सिरमौर,


यही निष्कर्ष निकालादाढ़ी थी,


इसलिए महाकवि हुए ‘निराला’कहं ‘काका’,


नारी सुंदर लगती साड़ी सेउसी भांति नर की शोभा होती दाढ़ी से।

तुम डार-डार, हम पात-पात




तुम डार-डार, हम पात-पात _ काका हाथरसी



महालेखापरीक्षक की रपट है गूढ़ ऐसी
गीता के श्लोक-जैसी।
पकड़कर वाक्य या श्लोक एक
अर्थ निकाल लीजिए अनेक।
राजीव को विपक्षी दोषी मान रहे हैं
पक्षी, पंखों का छाता तान रहे हैं।
बचाव की अहम् भूमिका निभा रहे हैं
कांग्रेसी संत
भगत जी और पंत।
वी.पी.सिंह दहाड़ रहे हैं,
देवीलाल मिसमिसा रहे हैं,
रामाराव विश्वामित्र बनकर
शाप देने आ रहे हैं।
क्या होगा भगवान
व्याकुल है धरती, आकुल है अंबर
जजमैंट देंगे मिस्टर दिसंबर।

आरती इक्कीसवीं सदी की







आरती इक्कीसवीं सदी की _ काका हाथरसी



इक्कीसवीं सदी, मेरी मइया इक्कीसवीं सदीऽऽ,
तरस रहे तेरे स्वागत को ताल-तलैया-नदी।

हत्या-हिंसा-नफरत के आँसू बहते जिनमें,
तुम आओ तब, होय प्रवाहित अमृतरस उनमें।

‘काका’ करे आचमन तो भौंरा-से भन्नाए,
होय बुढ़ापा दूर, जवानी सन-सन सन्नाए।

नई जवानी, नई रवानी, नवजीवन पाएँ,
नई उमर की नई फसल की, काकी ले आएँ।

नागिन-सी लट लटकें चमकें हीरा-से झुमके,
काव्य-मंच पर श्रीदेवी-जैसे मारें ठुमके।

तीन ग़ज़ल, दो गीत नए काका से ले लेंगी,
कवयित्री बनकर, लाखों के नोट बटोरेंगी।

नहीं करेंगे हम कोई पैदा बच्चा-बच्ची,
सफल होय परिवार-नियोजन, नींद आए अच्छी
फिर भी बालक चाहें, तो विज्ञान मदद देगा,
कम्प्यूटर का बटन दबाओ, बच्चा निकलेगा।

गाँव-गाँव में स्थापित हों,स्वीस बैंक ऐसे,
चाहो जितने जमा करो, दो नंबर के पैसे।

किसका कितना धन है कोई बता नहीं पाएँ
मार-मारकर सर, सब आई.टी.ओ.थक जाएँ।

यह आरती अगर लक्ष्मी का उल्लू भी गाए,
प्रधानमंत्री का पद उसे फटाफट मिल जाए।

हास्य वर्णमाला




हास्य वर्णमाला




-अनार-




खाकर एक अनार को आएं बीस डकार
हो जाते हैं एक से, अच्छे सौ बीमार,
अच्छे सौ बीमार, मधुर मोती से दाने
कर देते हैं दूर रोग सब नए-पुराने
अन्ननास, अमरुद्ध और अंगूर लाइए
मित्र मंडली संग खाइए, गीत गाइए




-आम-




आम चूसिए प्रेम से, अद्भुत इनका स्वाद
जिसने इनको बनाया उसको दाद दीजे उसको दाद,
दीजे उसको दाद, कचालू और रतालू
सब सब्जी का बाप बताया जाता आलू
कलमी-फज़ली आम दशहरी मन को भाएं
ओलम्पिक में लंगड़ा लम्बी दौड़

-इमली-

इमली खट्टी देखकर फड़के जिव्हा होंठ
चीनी इसमें डालिए, बन जाएगी सोंठ,
बन जाएगी सोंठ, साथ हो गर्म कचौड़ी
दह बड़े के साथ, सुहाती सुघर पकौड़ी
करलीजे स्वीकार, कभी इंकार न करिए
सीमित भोजन करो, अधिक खाने से
-ईख-
ईख खड़ी हो खेत में, डगमग हो ईमान
तोड़ तोड़कर चूसते, बच्चे और जवान,
बच्चे और जवान, बड़े बूढे ललचाते
रस गन्ने का देकर उनकी प्यास बुझाते
इसके द्वारा चीनी गुड़ शंकर बन जाएं
देशी और विदेशी इसकी महिमा गाएं

पंचायती राज

पंचायती राज - काका हाथरसी



गाँव-गाँव में होय अब, पंचायत के राज,
काका कवि तो खुश हुए, काकी जी नाराज।
काकी जी नाराज फैसला गलत किया है,
महिलाओं को सिर्फ तीस परसैंट दिया है।
अर्धांगिनि है नारि, उन्हें समझाना होगा,
फिफ्टी-फिफ्टी आरक्षण दिलवाना होगा।
पंचायत स्वर्णिम सपन, जब तक हो साकार,
तब तक जाने कौन-सी आएगी सरकार।
आएगी सरकार, अगर जनता दल आया,
बने बनाए पंचमहल का करें सफाया।
सत्ता को अपना कर्त्तव्य निभाना चाहिए,
है विपक्ष सिद्धांत, उसे लुढ़कना चाहिए।

हँसी के गुब्बारे




हँसी के गुब्बारे





प्रश्न पुलिंदा-1 _ काका हाथरसी




‘पधारिए श्रीमती काकी, हाँफ क्यों रही हो, मैडम ?’
‘एक सप्ताह की डाक का पुलिंदा लादकर लाए हैं हम, उठाकर तो देखो ?’
‘उठाकर तो तुमने देख लिया, हमको तो सुनाती चलो,
किसने क्या लिखा है, टेप रेकार्डर स्टार्ट कर दो।
हम उत्तर देते चलेंगे, टेप होते रहेंगे।
टाइपिस्ट आएगा, टाइप कर देगा।’

‘लेकिन यह मुसीबत क्यों पाल रखी है आपने ?’

‘मुसीबत मत समझो इसको डियर,
हम प्रश्नों के उत्तर कविता में देकर पाठकों की शंका करेंगे क्लियर,
फिर यह विविध भारती द्वारा प्रसारित होकर सारी दुनिया में फैल जाएँगे।
प्रश्नकर्ता प्रसन्न होकर हमारी-तुम्हारी जै-जैकार मनाएँगे।’
‘अच्छा जी, हो गई जै जैकार, तो सुनो यह पहिला प्रश्न है मेरठ से श्री...
‘ठहरो प्रश्नकर्ता का नाम -पता तो उसके पात्र में ही रहने दो,
तुम सिर्फ प्रश्न बोलती चलो, हम उत्तर देते चलें।’


प्रश्न : काका जी से मैं पूछना चाहता हूँ कि यदि आपको बुढ़ापे के बाद एकदम छोटा-सा बालक बना दिया जाए तो क्या होगा ?


उत्तर : इस जीवन को पूरा करके जन्म दुबारा ले लूँगा,
मम्मी जी का मिल्क पिऊँगा, गिल्ली डंडा खेलूँगा।
नित्य नियम से बस्ता लेकर जाऊँगा मैं पढ़ने को
ओलंपिक में पहुँचूँगा मल्लों से कुश्ती लड़ने को।
हँसी खुशी के गीत सुनाकर सबका मन बहलाऊँगा,
इसी कला से काका वाला पुरस्कार पा जाऊँगा।


प्रश्न : सफल हुआ उद्देश्य आपका, हँसने और हँसाने का किस दिन अवसर पाया था, काकी से बेलन खाने का ?


उत्तर : बेलन में गुन बहुत हैं कैसे तुम्हें बतायँ,
स्वाद चाखना होय तो कभी हाथरस आयँ।
कभी हाथरस आयँ, उपाय और है दूजा
अपने ही घर में करवा लो बेलन पूजा।
क्वांरे हो तो बहू मरखनी लेकर आओ
फिर कविताएँ लिखो धड़ाधड़ कवि बन जाओ।
प्र.-इंसान को बलवान बनने के लिए क्या करना चाहिए ?
उ.-भ्रष्टाचारी टॉप का, वी.आई.पी.के ठाठ,
इतनी चौड़ी तोंद हो, बिछा लीजिए खाट।
प्र.-मध्यावधि चुनावों में काँग्रेस (आई) की जीत का क्या कारण है ?
उ.-कुर्सी लालच द्वेष की, लूटम फूट प्रपंच,
बंदर आपस में लड़ें, बिल्ली छीना मंच।
प्र.-लेकर कलम जो बैठा, तो भूल गया सब, वरना मुझे कुछ आपसे, कहना ज़रूर था ?
उ.-कुछ फिक्र नहीं, अपनी बात भूल गए तुम,
हैं आप उधर चुप, तो इधर हम भी हैं गुमसुम।
प्र.-इंसान जब ठोकर खाता है तो क्या करता है ?
उ.-खाते-खाते ठोकरें, बिगड़ गई जब शक्ल,
संभल गए, तब लौटकर वापिस आई अक्ल।
प्र.-मनुष्य कितना ही अच्छा हो, उसमें दोष निकालने वाले क्यों पैदा हो जाते हैं।
उ.-मानव की तो क्या चली, बचा नहीं भगवान,
उसके निंदक देख लो, हैं नास्तिक श्रीमान्।
प्र.-काकाजी, मैं आपको दावत पर बुलाना चाहता हूँ ?
उ.-‘मीनू’ में क्या चीज है, बतलाओ यह बात,
कितनी दोगे दक्षिणा, दावत के पश्चात्।
प्र.-मौत और सौत में क्या फ़र्क है काका ?
उ.-मौत अच्छी फ़क़त इक बार मरने पर जलाती है,
सौत है मौत से बदतर, ज़िंदगी भर जलाती है।
प्र.-.-देवानंद कहते हैं ‘जॉनी मेरा नाम’। राजकपूर कहते हैं ‘मेरा नाम जोकर’ तो आप क्या कहते हैं ?
उ.-‘काका’ काका ही रहें, हुआ नाम सरनाम,
दलबदलू की तरह हम, क्योंकर हों बदनाम।
प्र.-नारी की दृष्टि में पुरुष क्या है ?
उ.-कार की दृष्टि में ड्राइवर, जनता पार्टी में चंद्रशेखर,
उसी प्रकार समझ लो मिस्टर, नारी की दृष्टि में है नर।
प्र. बैलबॉटम (सड़क झाड़ती) के बाद अब कौन-सा फैशन आएगा ?
उ.-बाबू बाँधे साड़ियाँ, बीबी पहिनें पैंट,
बीबीजी अफसर बनें, बाबू जी सरवैंट।
प्र.-इंसान छुटपन में बालक, जवानी में युवा, तो बुढ़ापे में ?
उ.-बूढ़ेपन में बुढ़उ बन, करें प्रभु का ध्यान,
या मुरारजी की तरह, ‘जीवन जल’ का पान।
प्र.-वैरी गुड लाइफ़, विद-आउट वाइफ़, आपकी एडवाइस ?
उ.-वाइफ़ से लाइफ़ बने, बिन वाइफ़ सुनसान,
नहीं किराए पर मिले, उसको कहीं मकान।
प्र.-नेता जब चारों ओर से निराश हो जाए तो ?
उ.-सत्ता से पत्ता कटे, हो करके असहाय,
भाषण देकर विरोधी, जनता को बहकाय।
प्र.-मेरी इच्छा हेमामालिनी से शादी करने की थी, किंतु उसे धर्मेन्द्र ले गए। अब क्या करूँ काका ?
उ.-छोड़ी जो धर्मेन्द्र ने, उसे पटालो यार,
बिना परिश्रम मुफ्त में, बच्चे पाओ चार।
प्र.-राजनारायण का दाढ़ी का एक बाल मुझे दिला सकते हैं ?
उ.-दाढ़ी की गाड़ी गिरी, बाल हुआ बेकार,
यदि तुमने मँगवा लिया, मिले हार पर हार।
प्र.-एक लड़की मेरी दुकान के सामने से गुजरती है तो मुसकरा देती है क्यों ?
उ.-उल्लूजी उल्लू बनें, लल्ली जब मुसकात,
जाय अँगूठा दिखाकर, जब आ जाए बरात।
प्र.-अगर लड़की चाँदनी चौक है तो लड़का ?
उ.-सीधा-सा यह प्रश्न है, नोट करो उत्तर्र,लली चाँदनी चौक है,
लल्ला घंटाघर्र।
प्र.-चार सौ की नौकरी में गृहस्थी की गुजर नहीं होती, रेलवे में काम करता हूँ, क्या करूँ ?
उ.-थ्री टायर की कोच के टी.टी.ई. बन जाउ,
मौज उड़ाओ रात दिन, इतने नोट कमाउ।

टिकटार्थी-प्रार्थी

टिकटार्थी-प्रार्थी _ काका हाथरसी



टिकट झपटने के लिए, उछल रहे श्रीमान,
विजयश्री हो प्राप्त तो, मिले मान-सम्मान।
मिले मान-सम्मान, पार हो जाए नैया,
श्रद्धा से आरती उतारें चमचा भैया।
जिनकी पॉकिट से पलते, लठैत भतखौआ,
उनसे हारें हंस, सफल हो जाएँ कौआ।

यार सप्तक




मॉर्डन रसिया



असली माखन कहाँ आजकल ‘शार्टेज’ है भारी
चरबी वारौ ‘बटर’ मिलैगो फ्रिज में, हे बनवारी
आधी टिकिया मुख लिपटाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।

मटकी रीती पड़ी दही की, बड़ी अजब लाचारी,
सपरेटा कौ दही मिलैगो कप में, हे बनवारी
छोटी चम्मच भर कै खाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।

नंदन वन के पेड़ कट गए, बने पार्क सरकारी
‘ट्विस्ट’ करत गोपियाँ मिलैंगी जिनमें, हे बनवारी
‘‘संडे’ के दिन रास रचाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।

जमना-तट सुनसान, मौन है बाँसुरिया बेचारी
गूँजत मधुर गिटार मिलैगो ब्रज में, हे बनवारी
फिल्मी डिस्को ट्यून सुनाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी

कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
सुखे ब्रज के ताल, गोपियाँ ‘स्विमिंग-पूल’ बलिहारी
पहने ‘बेदिंग सूट’ मिलैंगी जल में, हे बनवारी
उनके कपड़े चुस्त चुराय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।

‘रॉकेट’ बन उड़ गई चाँद पर रंग-भरी पिचकारी
गोपिन गोबर लिए मिलैंगी कर में, हे बनवारी
मुखड़ौ होली पै लिपवाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।
सूनौ पनघट, फूटी गगरी, मेम बनी ब्रजनारी
जूड़ौ गुंबद-छाप मिलौंगो सिर पै, हे बनवारी
दरसन कर कै, प्यास बुझाय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी
कान्हा, बरसाने में आय जइयो
बुलाय गई राधा प्यारी।

नयावर्ष ! हर्षोत्कर्ष




नयावर्ष ! हर्षोत्कर्ष _ काका हाथरसी



टा-टा कहकर रिटायर, हुआ नवासी वर्ष
स्वागत 90 का करें, पाएँ हर्षोत्कर्ष।
पाएँ हर्षोत्कर्ष, भेद-भावना भुलाएँ,
रंजोगम को छोड़, ठहाके नित्य लगाएँ।
स्वस्थ, सुखी, अलमस्ती से जिंदगी काटिए,
झुग्गी-झोंपड़ियों को भी मुस्कान बाँटिए।

नए वर्ष में प्राप्त हो, अंग-अंग नवरंग,
रूढ़िवादिता छोड़कर, चलो समय के संग।
चलो समय के संग, हिया से हिया मिलाओ,
छोड़ रार-तकरार, प्यार के दिये जलाओ।
हत्या-हिंसा, घृणा-द्वेष की खाई पाटो,
हाय-हाय तज वाह-वाह के नारे बाँटो।

हँसते-हँसते हो गए, काका तिरासी साल
भौंरा से भन्ना रहे, सिर पर काले बाल।
सिर पर काले बाल, बताएँ घर के भेदी,
काकी जी के बालों पर आ गई सफेदी।
क्या चिंता है, मज़े दे रहीं जुल्फ़ें व्हाइट,
घुप्प अँधेरी नाइट में भी मारें लाइट।

काकी काजल लगाकर, नैन-सैन मटकाए,
पत्थर दिल भी पिघलकर, प्यौर शहद बन जाए।
प्यौर शहद बन जाए, छिपाएँ क्यों हम तुमसे,
नई-नई कल्पना, नित्य मिलती हैं उनसे।
रूठ जाय दिलरूबा, मनौती करें मनाएँ,
बिल्ली के सम्मुख ‘काका’ चूहे बन जाएँ।

कलयुगी द्रौपदी




कलयुगी द्रौपदी - काका हाथरसी



काकी से की प्रार्थना, नवा-नवाकर शीश,
प्रिये, हमें दे दीजिए रुपे चार सौ बीस।
रूपे चार सौ बीस, आज जूआ खेलेंगे,
यह संख्या बलवान, शर्तिया हम जीतेंगे।
लगा दिए वे रुपये, एक दाव पर सारे,
दुगुने आए लौट, हौसले बढ़े हमारे।
साहस आगे बढ़ा, दाँव-पर-दाँव लगाए,
हार गए सब, घर आए मुँह को लटकाए।

काकी बोलीं- क्या हुआ, कैसे बीती रात,
कितने आए जीतकर, सच-सच बोलो बात ?
सच-सच बोलो बात, सुनाया संकट उनको,
जीत भाड़ में गई, हार बैठे हम तुमको।
सुनकर देवी जी ने मारा एक ठहाका,
मुझे द्रौपदी समझा है क्या तुमने काका ?
घबराओ मत चिंता छोड़ो, पीओ-खाओ
जीत गए जो कौरव, उनके पते बताओ !

तन-मन व्याकुल हो रहा, क्या होगा रघुनाथ,
लेकर बेलन हाथ में, चलीं हमारे साथ।
चलीं हमारे साथ, देख बूढ़ी रणचंडी,
कौरव-दल की सारी जीत हो गई ठंडी।
दु:शासन जी बोले, क्षमा कीजिए हमको,
यह कलयुगी द्रौपदी, रहे मुबारक तुमको।
काकी बोलीं-यों नहिं पीछा छोड़ूँ भइए,
लौटाओ सब इनसे जीते हुए रुपइए।

संगीन नेता : रंगीन दोहे

संगीन नेता : रंगीन दोहे _ काका हाथरसी



चहुँदिशि उड़ें विमान में, इंकापति राजीव,
अगले आम चुनाव की, जमा रहे हैं नींव।
जिताएँ समाज सेवी, व्यर्थ निकली श्रीदेवी !

करुणानिधि का करुणरस, बदल बन गया हास,
तमिलनाडु में शेष रस, रक्खे अपने पास।
करेंगे नवरस पूरे, न समझो स्वप्न अधूरे !

चंडी चुरहट लाटरी, चाट गई सब खीर,
फड़क रहे गांडीव में, अर्जुनसिंह के तीर।
खोट करते हैं पुत्तर, बापजी क्यों दें उत्तर ?

धीरे-धीरे लग रही, वी.पी.सिंह की हाट,
कब प्रधानमंत्री बनें, देख रहे हैं बाट।
घोषणा कर डाली है, विकल्प जनता-दल ही है !

कहें चंद्रशेखर, रहें सत्ता से हम दूर,
जनता-दल की बेल के, खट्टे हैं अंगूर।
सिंह जी भरकम भारी, दाल नहिं गले हमारी !

कमलापति राजीव को, चिट्ठी लिखते रोज,
पट्ठे उनके कर रहे, पोस्टमैन की खोज।
नहीं कुछ उत्तर आता, बुढ़ापा बढ़ता जाता !

भजनलाल के भजन से, बजें भवन में ढोल
बेटा देवीलाल के, खोल रहे हैं पोल।
वित्त विवरण नहिं देंगे, विरोधी क्या कर लेंगे !

भगत सरीखा जगत में, कौन मिलेगा व्यक्ति,
दिल्ली की किल्ली हिले, दिखलाए जब शक्ति।
दंडवत करते लाला, देखकर चश्मा काला !

बूटासिंह के बूट पर, मक्खन मलिए आप,
कष्ट दूर हो जाएँगे, नष्ट होएँ सब पाप।
कृपा जिसने पाई जी, बन गए डी.आई.जी. !

दिल्ली में रैली हुई, पीड़ित हुए किसान,
टिक नहिं सके टिकैत जी, फ़ेल हो गया प्लान।
दिखाते रहते मुक्का, सामने रखकर हुक्का !

अटलबिहारी अनमने, एकल करें निवास,
अब इनको डाले नहीं, कोई सुमुखी घास।
प्रगति गति ढुलमुल-सी है, भाजपा व्याकुल-सी है !

ए भाई, वोट डालते चलो




ए भाई, वोट डालते चलो _ काका हाथरसी



भाई ! वोट डालते चलो,
आगे ना देखो, पीछे भी, दाएँ न देखो, बाएँ भी
ऊपर भी नहीं, नीचे भी। ए भाई...।
पाँच-पाँच साल बाद आता ये चुनाव है,
ख्वाब है, तमन्ना है, दिल में भी तनाव है।
जान की एक बाजी है, आखिरी ये दाव है।
काम नहीं, दाम नहीं, सर्विस नहीं, धंधा नहीं।
हानि नहीं, लाभ नहीं, ये तो सेवा है। ए भाई...।
और प्यारे ! ये चुनाव जो दंगल है,
चुनाव जो कुश्ती है,
चुनाव जो किस्मत है,
पाँच-पाँच साल बाद, एक बार आता है।
बड़े को भी, छोटी को भी,
खरे को भी, खोटे को भी,
दुबले को भी, मोटे को भी,
पार्टी की एक जो टिकट पा जाता है
नेता बन जाता है, भाग्य खुल जाता है। ए भाई...।

घर-घर गली-गली, गाँव-गाँव, जहाँ हमारी जनता है
नेता को जनता के पास जाना पड़ता है,
लोगों के जूतों में झुक जाना पड़ता है।
सूखे वायदों को सब्ज़बाग दिखाना पड़ता है। ए भाई...।

कैसा ये करिश्मा है ? कैसा खिलवाड़ है,
चुनाव में किसी का, कौन वफादार है।
एक की कार में बैठ के जो आता है,
दूसरे के कैंप में फौरन घुस जाता है।
माल जिसका खाता है, पैसा जिससे पाता है,
गीत जिसका गाता है।
उसके ही हारने पर तालियाँ बजाता है। ए भाई....।

सेवा-भाव बचपन है, इलैक्शन जवानी है
पराजय बुढ़ापा है और इसके बाद
जीप नहीं, फोन नहीं, माइक नहीं, मंच नहीं,
माला नहीं, प्याला नहीं, कोठी नहीं, कार नहीं।
कुछ भी नहीं रहता है।
खाली-खाली समितियाँ, खाली-खाली सेमिनार
खाली-खाली डेरा है
सारा मुल्क अँधेरा है, ना मेरा है, ना तेरा है,
ऐ भाई....।

आरती : रिश्वतरानी की

आरती : रिश्वतरानी की _ काका हाथरसी


जय रिश्वत रानी, मैया जय रिश्वत रानी।
तेरी महिमा से परिचित, सब ज्ञानी-अज्ञानी।।

नाम अनेकों, रूप बहुत, क्या कैसे कह पाएँ।
शेषनाग थक जाएँ, लेखनी आँसू टपकाएँ।।

भेंट, दलाली, नज़राना, बख़्शिश या हक-पानी।
देकर सुविधा-शुल्क, प्राप्त हो सुविधा मनमानी।।

भारत-भू पर, कोई कोना, नहीं दिखा ऐसा।
काम सफल हो जाए जहाँ पर, बिना दिए पैसा।।

ऐप्लीकेशन जिनकी नहिं, नंबर पर चढ़ पाती।
दे देते जो गिफ़्ट, लिफ़्ट झट उनको मिल जाती।।

कोर्ट कचहरी, न्यायालय में जड़ तेरी गहरी।
ईंट-ईंट से निकल रही, रिश्वत की स्वरलहरी।।

सौ-पचास का नोट, पिऊन की पॉकिट में धर दो।
कहो कान में, अमुक केस की फ़ाइल गुम कर दो।।

रेल-मेल में भीड़-भड़क्का, धकापेल-धक्का।
प्लेटफ़ार्म पर खड़े-खड़े, टिपियाते कवि कक्का।।

गार्ड साब ने मारी-सीटी, तब टी.टी. आया।
रुपए बीस दिए जिसने, उसने स्लीपर पाया।।

वेटिंग वालों से दस-दस लें, गायब हो जाएँ।
ड्रैस बदलकर, फ़र्स्ट-क्लास कूपे में सो जाएँ।।

होली पर ससुराल गए, तो पड़े व्यंग्य-कोड़े।
‘फगुआ’ रूपी रिश्वत लेकर, साली ने छोड़े।।

रिश्वत रानी की आरति, जो श्रद्धा से गाए।
होय अँगूठा छाप, नामवर नेता बन जाए।।