हँसी के गुब्बारे




हँसी के गुब्बारे





प्रश्न पुलिंदा-1 _ काका हाथरसी




‘पधारिए श्रीमती काकी, हाँफ क्यों रही हो, मैडम ?’
‘एक सप्ताह की डाक का पुलिंदा लादकर लाए हैं हम, उठाकर तो देखो ?’
‘उठाकर तो तुमने देख लिया, हमको तो सुनाती चलो,
किसने क्या लिखा है, टेप रेकार्डर स्टार्ट कर दो।
हम उत्तर देते चलेंगे, टेप होते रहेंगे।
टाइपिस्ट आएगा, टाइप कर देगा।’

‘लेकिन यह मुसीबत क्यों पाल रखी है आपने ?’

‘मुसीबत मत समझो इसको डियर,
हम प्रश्नों के उत्तर कविता में देकर पाठकों की शंका करेंगे क्लियर,
फिर यह विविध भारती द्वारा प्रसारित होकर सारी दुनिया में फैल जाएँगे।
प्रश्नकर्ता प्रसन्न होकर हमारी-तुम्हारी जै-जैकार मनाएँगे।’
‘अच्छा जी, हो गई जै जैकार, तो सुनो यह पहिला प्रश्न है मेरठ से श्री...
‘ठहरो प्रश्नकर्ता का नाम -पता तो उसके पात्र में ही रहने दो,
तुम सिर्फ प्रश्न बोलती चलो, हम उत्तर देते चलें।’


प्रश्न : काका जी से मैं पूछना चाहता हूँ कि यदि आपको बुढ़ापे के बाद एकदम छोटा-सा बालक बना दिया जाए तो क्या होगा ?


उत्तर : इस जीवन को पूरा करके जन्म दुबारा ले लूँगा,
मम्मी जी का मिल्क पिऊँगा, गिल्ली डंडा खेलूँगा।
नित्य नियम से बस्ता लेकर जाऊँगा मैं पढ़ने को
ओलंपिक में पहुँचूँगा मल्लों से कुश्ती लड़ने को।
हँसी खुशी के गीत सुनाकर सबका मन बहलाऊँगा,
इसी कला से काका वाला पुरस्कार पा जाऊँगा।


प्रश्न : सफल हुआ उद्देश्य आपका, हँसने और हँसाने का किस दिन अवसर पाया था, काकी से बेलन खाने का ?


उत्तर : बेलन में गुन बहुत हैं कैसे तुम्हें बतायँ,
स्वाद चाखना होय तो कभी हाथरस आयँ।
कभी हाथरस आयँ, उपाय और है दूजा
अपने ही घर में करवा लो बेलन पूजा।
क्वांरे हो तो बहू मरखनी लेकर आओ
फिर कविताएँ लिखो धड़ाधड़ कवि बन जाओ।
प्र.-इंसान को बलवान बनने के लिए क्या करना चाहिए ?
उ.-भ्रष्टाचारी टॉप का, वी.आई.पी.के ठाठ,
इतनी चौड़ी तोंद हो, बिछा लीजिए खाट।
प्र.-मध्यावधि चुनावों में काँग्रेस (आई) की जीत का क्या कारण है ?
उ.-कुर्सी लालच द्वेष की, लूटम फूट प्रपंच,
बंदर आपस में लड़ें, बिल्ली छीना मंच।
प्र.-लेकर कलम जो बैठा, तो भूल गया सब, वरना मुझे कुछ आपसे, कहना ज़रूर था ?
उ.-कुछ फिक्र नहीं, अपनी बात भूल गए तुम,
हैं आप उधर चुप, तो इधर हम भी हैं गुमसुम।
प्र.-इंसान जब ठोकर खाता है तो क्या करता है ?
उ.-खाते-खाते ठोकरें, बिगड़ गई जब शक्ल,
संभल गए, तब लौटकर वापिस आई अक्ल।
प्र.-मनुष्य कितना ही अच्छा हो, उसमें दोष निकालने वाले क्यों पैदा हो जाते हैं।
उ.-मानव की तो क्या चली, बचा नहीं भगवान,
उसके निंदक देख लो, हैं नास्तिक श्रीमान्।
प्र.-काकाजी, मैं आपको दावत पर बुलाना चाहता हूँ ?
उ.-‘मीनू’ में क्या चीज है, बतलाओ यह बात,
कितनी दोगे दक्षिणा, दावत के पश्चात्।
प्र.-मौत और सौत में क्या फ़र्क है काका ?
उ.-मौत अच्छी फ़क़त इक बार मरने पर जलाती है,
सौत है मौत से बदतर, ज़िंदगी भर जलाती है।
प्र.-.-देवानंद कहते हैं ‘जॉनी मेरा नाम’। राजकपूर कहते हैं ‘मेरा नाम जोकर’ तो आप क्या कहते हैं ?
उ.-‘काका’ काका ही रहें, हुआ नाम सरनाम,
दलबदलू की तरह हम, क्योंकर हों बदनाम।
प्र.-नारी की दृष्टि में पुरुष क्या है ?
उ.-कार की दृष्टि में ड्राइवर, जनता पार्टी में चंद्रशेखर,
उसी प्रकार समझ लो मिस्टर, नारी की दृष्टि में है नर।
प्र. बैलबॉटम (सड़क झाड़ती) के बाद अब कौन-सा फैशन आएगा ?
उ.-बाबू बाँधे साड़ियाँ, बीबी पहिनें पैंट,
बीबीजी अफसर बनें, बाबू जी सरवैंट।
प्र.-इंसान छुटपन में बालक, जवानी में युवा, तो बुढ़ापे में ?
उ.-बूढ़ेपन में बुढ़उ बन, करें प्रभु का ध्यान,
या मुरारजी की तरह, ‘जीवन जल’ का पान।
प्र.-वैरी गुड लाइफ़, विद-आउट वाइफ़, आपकी एडवाइस ?
उ.-वाइफ़ से लाइफ़ बने, बिन वाइफ़ सुनसान,
नहीं किराए पर मिले, उसको कहीं मकान।
प्र.-नेता जब चारों ओर से निराश हो जाए तो ?
उ.-सत्ता से पत्ता कटे, हो करके असहाय,
भाषण देकर विरोधी, जनता को बहकाय।
प्र.-मेरी इच्छा हेमामालिनी से शादी करने की थी, किंतु उसे धर्मेन्द्र ले गए। अब क्या करूँ काका ?
उ.-छोड़ी जो धर्मेन्द्र ने, उसे पटालो यार,
बिना परिश्रम मुफ्त में, बच्चे पाओ चार।
प्र.-राजनारायण का दाढ़ी का एक बाल मुझे दिला सकते हैं ?
उ.-दाढ़ी की गाड़ी गिरी, बाल हुआ बेकार,
यदि तुमने मँगवा लिया, मिले हार पर हार।
प्र.-एक लड़की मेरी दुकान के सामने से गुजरती है तो मुसकरा देती है क्यों ?
उ.-उल्लूजी उल्लू बनें, लल्ली जब मुसकात,
जाय अँगूठा दिखाकर, जब आ जाए बरात।
प्र.-अगर लड़की चाँदनी चौक है तो लड़का ?
उ.-सीधा-सा यह प्रश्न है, नोट करो उत्तर्र,लली चाँदनी चौक है,
लल्ला घंटाघर्र।
प्र.-चार सौ की नौकरी में गृहस्थी की गुजर नहीं होती, रेलवे में काम करता हूँ, क्या करूँ ?
उ.-थ्री टायर की कोच के टी.टी.ई. बन जाउ,
मौज उड़ाओ रात दिन, इतने नोट कमाउ।