काका हाथरसी जी- काका से क्षमायाचना सहित)

प्रभू मेरे मै नहीं रिश्वत खाईन्जबरण



नोट भरे पाकिट में , करके हाथापाई। मोहि फंसाइके,सफा निकसि गयॊ,सेठ बड़ो हरजाई।भोजन-भजन कछू सुहावै, आई रही उबकाई।देउ दबाय केस को भगवन, कर लो आध बटाई।कहं काका तब बिहंसि प्रभू ने, लियो कंठ लपटाई।प्रभू मेरे मैं नहीं रिश्वत खाई। -कवि स्वर्गीय काका हाथरसी जी- काका से क्षमायाचना सहित)