आरती इक्कीसवीं सदी की







आरती इक्कीसवीं सदी की _ काका हाथरसी



इक्कीसवीं सदी, मेरी मइया इक्कीसवीं सदीऽऽ,
तरस रहे तेरे स्वागत को ताल-तलैया-नदी।

हत्या-हिंसा-नफरत के आँसू बहते जिनमें,
तुम आओ तब, होय प्रवाहित अमृतरस उनमें।

‘काका’ करे आचमन तो भौंरा-से भन्नाए,
होय बुढ़ापा दूर, जवानी सन-सन सन्नाए।

नई जवानी, नई रवानी, नवजीवन पाएँ,
नई उमर की नई फसल की, काकी ले आएँ।

नागिन-सी लट लटकें चमकें हीरा-से झुमके,
काव्य-मंच पर श्रीदेवी-जैसे मारें ठुमके।

तीन ग़ज़ल, दो गीत नए काका से ले लेंगी,
कवयित्री बनकर, लाखों के नोट बटोरेंगी।

नहीं करेंगे हम कोई पैदा बच्चा-बच्ची,
सफल होय परिवार-नियोजन, नींद आए अच्छी
फिर भी बालक चाहें, तो विज्ञान मदद देगा,
कम्प्यूटर का बटन दबाओ, बच्चा निकलेगा।

गाँव-गाँव में स्थापित हों,स्वीस बैंक ऐसे,
चाहो जितने जमा करो, दो नंबर के पैसे।

किसका कितना धन है कोई बता नहीं पाएँ
मार-मारकर सर, सब आई.टी.ओ.थक जाएँ।

यह आरती अगर लक्ष्मी का उल्लू भी गाए,
प्रधानमंत्री का पद उसे फटाफट मिल जाए।