व्यक्तित्व.. डाक्टर वैद्य बता रहे, कुदरत का कानून,जितना हँसता आदमी, उतना बढ़ता खून।उतना बढ़ता खून, हास्य में की कंजूसी,सुंदर सूरत-नूरत पर छाई मनहूसी। कहँ काका कवि, हास्य-व्यंग्य जो पीते डट के,रहता सदा बहार, बुढ़ापा पास न फटके।
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chutkia
व्यक्तित्व.. डाक्टर वैद्य बता रहे, कुदरत का कानून,जितना हँसता आदमी, उतना बढ़ता खून।उतना बढ़ता खून, हास्य में की कंजूसी,सुंदर सूरत-नूरत पर छाई मनहूसी। कहँ काका कवि, हास्य-व्यंग्य जो पीते डट के,रहता सदा बहार, बुढ़ापा पास न फटके।
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जलेबी kaka hathrasi
आए जब इंगलैंड से
भारत - विलियम डंग,
खा कर गरम जलेबियाँ
डंग रह गए दंग,
बोले, "इसे कैसे बनाता,
ताज्जुब है रस भीतर
कैसे घुस जाता"?,
बैरा बोला, "साहब,
इसे आरटिस्ट बनाते,
बन जाती तो,
इंजेक्शन से रस पहुँचाते।
भारत - विलियम डंग,
खा कर गरम जलेबियाँ
डंग रह गए दंग,
बोले, "इसे कैसे बनाता,
ताज्जुब है रस भीतर
कैसे घुस जाता"?,
बैरा बोला, "साहब,
इसे आरटिस्ट बनाते,
बन जाती तो,
इंजेक्शन से रस पहुँचाते।
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ल्यूना-पन्द्रह' उड़ गया, चन्द्र लोक की ओर
पहुँच गया लौटा नहीं मचा विश्व में शोर
मचा विश्व में शोर, सुन्दरी चीनी बाला
रहे चँद्रमा पर लेकर खरगोश निराला
उस गुड़िया की चटक-मटक पर भटक गया है
अथवा 'बुढ़िया के चरखे' में अटक गया है
कहँ काका कवि, गया चाँद पर लेने मिट्टी
मिशन फैल हो गया हो गयी गायब सिट्टी
पहुँच गए जब चाँद पर, एल्ड्रिन, आर्मस्ट्रोंग
शायर- कवियों की हुई काव्य कल्पना 'रोंग'
काव्य कल्पना 'रोंग', सुधाकर हमने जाने
कंकड़-पत्थर मिले, दूर के ढोल सुहाने
कहँ काका कविराय, खबर यह जिस दिन आई
सभी चन्द्रमुखियों पर घोर निरशा छाई
पार्वती कहने लगीं, सुनिए भोलेनाथ !
अब अच्छा लगता नहीं 'चन्द्र' आपके माथ
'चन्द्र' आपके माथ, दया हमको आती है
बुद्धि आपकी तभी 'ठस्स' होती जाती है
धन्य अपोलो ! तुमने पोल खोल कर रख दी
काकीजी ने 'करवाचौथ' कैंसिल कर दी
सुघड़ सुरीली सुन्दरी दिल पर मारे चोट
चमक चाँद से भी अधिक कर दे लोटम पोट
कर दे लोटम पोट, इसी से दिल बहलाएँ
चंदा जैसी चमकें, चन्द्रमुखी कहलाएँ
मेकप करते-करते आगे बढ़ जाती है
अधिक प्रशंसा करो चाँद पर चढ़ जाती है
प्रथम बार जब चाँद पर पहुँचे दो इंसान
कंकड़ पत्थर देखकर लौट आए श्रीमान
लौट आए श्रीमान, खबर यह जिस दिन आई
सभी चन्द्रमुखियों पर घोर निरशा छाई
पोल खुली चन्दा की, परिचित हुआ ज़माना
कोई नहीं चाहती अब चन्द्रमुखी कहलाना
वित्तमंत्री से मिले, काका कवि अनजान
प्रश्न किया क्या चाँद पर रहते हैं इंसान
रहते हैं इंसान, मारकर एक ठहाका
कहने लगे कि तुम बिलकुल बुद्धू हो काका
अगर वहाँ मानव रहते, हम चुप रह जाते
अब तक सौ दो सौ करोड़ कर्जा ले आत
पहुँच गया लौटा नहीं मचा विश्व में शोर
मचा विश्व में शोर, सुन्दरी चीनी बाला
रहे चँद्रमा पर लेकर खरगोश निराला
उस गुड़िया की चटक-मटक पर भटक गया है
अथवा 'बुढ़िया के चरखे' में अटक गया है
कहँ काका कवि, गया चाँद पर लेने मिट्टी
मिशन फैल हो गया हो गयी गायब सिट्टी
पहुँच गए जब चाँद पर, एल्ड्रिन, आर्मस्ट्रोंग
शायर- कवियों की हुई काव्य कल्पना 'रोंग'
काव्य कल्पना 'रोंग', सुधाकर हमने जाने
कंकड़-पत्थर मिले, दूर के ढोल सुहाने
कहँ काका कविराय, खबर यह जिस दिन आई
सभी चन्द्रमुखियों पर घोर निरशा छाई
पार्वती कहने लगीं, सुनिए भोलेनाथ !
अब अच्छा लगता नहीं 'चन्द्र' आपके माथ
'चन्द्र' आपके माथ, दया हमको आती है
बुद्धि आपकी तभी 'ठस्स' होती जाती है
धन्य अपोलो ! तुमने पोल खोल कर रख दी
काकीजी ने 'करवाचौथ' कैंसिल कर दी
सुघड़ सुरीली सुन्दरी दिल पर मारे चोट
चमक चाँद से भी अधिक कर दे लोटम पोट
कर दे लोटम पोट, इसी से दिल बहलाएँ
चंदा जैसी चमकें, चन्द्रमुखी कहलाएँ
मेकप करते-करते आगे बढ़ जाती है
अधिक प्रशंसा करो चाँद पर चढ़ जाती है
प्रथम बार जब चाँद पर पहुँचे दो इंसान
कंकड़ पत्थर देखकर लौट आए श्रीमान
लौट आए श्रीमान, खबर यह जिस दिन आई
सभी चन्द्रमुखियों पर घोर निरशा छाई
पोल खुली चन्दा की, परिचित हुआ ज़माना
कोई नहीं चाहती अब चन्द्रमुखी कहलाना
वित्तमंत्री से मिले, काका कवि अनजान
प्रश्न किया क्या चाँद पर रहते हैं इंसान
रहते हैं इंसान, मारकर एक ठहाका
कहने लगे कि तुम बिलकुल बुद्धू हो काका
अगर वहाँ मानव रहते, हम चुप रह जाते
अब तक सौ दो सौ करोड़ कर्जा ले आत
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हास्याष्टक
‘काका’ से कहने लगे, शिवानंद आचार्य
रोना-धोना पाप है, हास्य पुण्य का कार्य हास्य पुण्य का कार्य, उदासी दूर भगाओ रोग-शोक हों दूर, हास्यरस पियो-पिलाओ क्षणभंगुर मानव जीवन, मस्ती से काटो मनहूसों से बचो, हास्य का हलवा चाटो आमंत्रित हैं, सब बूढ़े-बच्चे, नर-नारी ‘काका की चौपाल’ प्रतीक्षा करे तुम्हारी
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लूटनीति मंथन करी _(काका दोहावली)
लूटनीति मंथन करी _ काका हाथरसी
(काका दोहावली)
मेरी भाव बाधा हरो
पूज्य बिहारीलाल
दोहा बनकर सामने, दर्शन दो तत्काल।
अँग्रेजी से प्यार है,
हिंदी से परहेज,
ऊपर से हैं इंडियन, भीतर से अँगरेज।
अँखियाँ मादक रस-भरी
गज़ब गुलाबी होंठ,
ऐसी तिय अति प्रिय लगे, ज्यों दावत में सोंठ।
अंतरपट में खोजिए,
छिपा हुआ है खोट,
मिल जाएगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोट।
अंदर काला हृदय है,
ऊपर गोरा मुक्ख,
ऐसे लोगों को मिले, परनिंदा में सुक्ख।
अंधकार में फेंक दी,
इच्छा तोड़-मरोड़
निष्कामी काका बने, कामकाज को छोड़।
अंध धर्म विश्वास में,
फँस जाता इंसान,
निर्दोषों को मारकर, बन जाता हैवान।
अंधा प्रेमी अक्ल से,
काम नहीं कुछ लेय,
प्रेम-नशे में गधी भी, परी दिखाई देय।
अक्लमंद से कह रहे,
मिस्टर मूर्खानंद,
देश-धर्म में क्या धरा, पैसे में आनंद।
अगर चुनावी वायदे,
पूर्ण करे सरकार,
इंतज़ार के मज़े सब, हो जाएँ बेकार।
अगर फूल के साथ में,
लगे न होते शूल,
बिना बात ही छेड़ते, उनको नामाकूल।
अगर मिले दुर्भाग्य से,
भौंदू पति बेमेल,
पत्नी का कर्त्तव्य है, डाले नाक नकेल।
अगर ले लिया कर्ज कुछ,
क्या है इसमें हर्ज़,
यदि पहचानोगे उसे, माँगे पिछला क़र्ज़।
अग्नि निकलती रगड़ से,
जानत हैं सब कोय,
दिल टकराए, इश्क की बिजली पैदा होय।
अच्छी लगती दूर से
मटकाती जब नैन,
बाँहों में आ जाए तब बोले कड़वे बैन।
अजगर करे न चाकरी,
पंछी करे न काम,
चाचा मेरे कह गए, कर बेटा आराम।
अजगर करे न चाकरी
पंछी करे न काम,
भाग्यवाद का स्वाद ले, धंधा काम हराम।
अति की बुरी कुरूपता, अति का भला न रूप,
अति का भला न बरसना अति भली न धूप।
अति की भली न दुश्मनी,
अति का भला न प्यार
तू तू मैं मैं जब हुई प्यार हुआ बेकार।
अति की भली न बेरुखी,
अति का भला न प्यार
अति की भली न मिठाई, अति का भला न खार।
अति की वर्षा भी बुरी,
अति की भली न धूप,
अति की बुरी कूरुपता, अति का भला न रूप।
अधिक समय तक चल
नहीं, सकता वह व्यापार,
जिसमें साझीदार हों, लल्लू-पंजू यार।
अधिकारी के आप तब,
बन सकते प्रिय पात्र
काम छोड़ नित नियम से, पढ़िए, चमचा-शास्त्र।
अपना स्वारथ साधकर,
जनता को दे कष्ट,
भ्रष्ट आचरण करे जो वह नेता हो भ्रष्ट।
अपनी आँख तरेर कर,
जब बेलन दिखलाय,
अंडा-डंडा गिर पड़ें, घर ठंडा हो जाय।
अपनी गलती नहिं दिखे,
समझे खुद को ठीक,
मोटे-मोटे झूठ को, पीस रहा बारीक।
अपनी ही करता रहे,
सुने न दूजे तर्क
सभी तर्क हों व्यर्थ जब, मूरख करे कुतर्क
पूज्य बिहारीलाल
दोहा बनकर सामने, दर्शन दो तत्काल।
अँग्रेजी से प्यार है,
हिंदी से परहेज,
ऊपर से हैं इंडियन, भीतर से अँगरेज।
अँखियाँ मादक रस-भरी
गज़ब गुलाबी होंठ,
ऐसी तिय अति प्रिय लगे, ज्यों दावत में सोंठ।
अंतरपट में खोजिए,
छिपा हुआ है खोट,
मिल जाएगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोट।
अंदर काला हृदय है,
ऊपर गोरा मुक्ख,
ऐसे लोगों को मिले, परनिंदा में सुक्ख।
अंधकार में फेंक दी,
इच्छा तोड़-मरोड़
निष्कामी काका बने, कामकाज को छोड़।
अंध धर्म विश्वास में,
फँस जाता इंसान,
निर्दोषों को मारकर, बन जाता हैवान।
अंधा प्रेमी अक्ल से,
काम नहीं कुछ लेय,
प्रेम-नशे में गधी भी, परी दिखाई देय।
अक्लमंद से कह रहे,
मिस्टर मूर्खानंद,
देश-धर्म में क्या धरा, पैसे में आनंद।
अगर चुनावी वायदे,
पूर्ण करे सरकार,
इंतज़ार के मज़े सब, हो जाएँ बेकार।
अगर फूल के साथ में,
लगे न होते शूल,
बिना बात ही छेड़ते, उनको नामाकूल।
अगर मिले दुर्भाग्य से,
भौंदू पति बेमेल,
पत्नी का कर्त्तव्य है, डाले नाक नकेल।
अगर ले लिया कर्ज कुछ,
क्या है इसमें हर्ज़,
यदि पहचानोगे उसे, माँगे पिछला क़र्ज़।
अग्नि निकलती रगड़ से,
जानत हैं सब कोय,
दिल टकराए, इश्क की बिजली पैदा होय।
अच्छी लगती दूर से
मटकाती जब नैन,
बाँहों में आ जाए तब बोले कड़वे बैन।
अजगर करे न चाकरी,
पंछी करे न काम,
चाचा मेरे कह गए, कर बेटा आराम।
अजगर करे न चाकरी
पंछी करे न काम,
भाग्यवाद का स्वाद ले, धंधा काम हराम।
अति की बुरी कुरूपता, अति का भला न रूप,
अति का भला न बरसना अति भली न धूप।
अति की भली न दुश्मनी,
अति का भला न प्यार
तू तू मैं मैं जब हुई प्यार हुआ बेकार।
अति की भली न बेरुखी,
अति का भला न प्यार
अति की भली न मिठाई, अति का भला न खार।
अति की वर्षा भी बुरी,
अति की भली न धूप,
अति की बुरी कूरुपता, अति का भला न रूप।
अधिक समय तक चल
नहीं, सकता वह व्यापार,
जिसमें साझीदार हों, लल्लू-पंजू यार।
अधिकारी के आप तब,
बन सकते प्रिय पात्र
काम छोड़ नित नियम से, पढ़िए, चमचा-शास्त्र।
अपना स्वारथ साधकर,
जनता को दे कष्ट,
भ्रष्ट आचरण करे जो वह नेता हो भ्रष्ट।
अपनी आँख तरेर कर,
जब बेलन दिखलाय,
अंडा-डंडा गिर पड़ें, घर ठंडा हो जाय।
अपनी गलती नहिं दिखे,
समझे खुद को ठीक,
मोटे-मोटे झूठ को, पीस रहा बारीक।
अपनी ही करता रहे,
सुने न दूजे तर्क
सभी तर्क हों व्यर्थ जब, मूरख करे कुतर्क
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चुनाव-चातुर्यसीट प्राप्त हो जाए तो मिटे सकल संतापअक्कल दिन-दूनी बढ़े, छिपें पुराने पापछिपे पुराने पाप, बनाते रहिए भत्ताआज लखनऊ, कल दिल्ली, परसों कलकत्ताकहं ‘काका’, यह कला सीख बन जाओ नेतानेता को भगवान फाड़कर छप्पड़ देता।
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२६ जनवरीकड़की
२६ जनवरीकड़की - काका हाथरसी
२६ जनवरीकड़की भड़की
मंहगाई भुखमरीचुप रहो आज है
छब्बीस जनवरीकल वाली रेलगाडी सभी आज आई
स्वागत में यात्रियों ने तालियाँ बजाई
नही गए नहीं डरे नही झिड़की सेदरवाज़ा बंद काका कूद गये
खिड़की सेखुश हो रेलमंत्री जी सुन कर खुशखबरीचुप रहो
आज है .......राशन के वासन लिए लाइन में खडे रहोशान
मान छोड़ कर आन पर अडे रहोनल में नहीं जल है
तो शोर क्यो मचाते होड्राई क्लीन कर डालो व्यर्थक्यो
नहाते होमिस्टर मिनिस्टर की
करते क्यो बराबरीचुप रहो आज है ...................छोड़ दो
खिलौने सब त्याग दो सब खेल कोलाइन में लगो
बच्चो मिटटी के तेल कोकागज़ खा
जाएंगी कापिया सब आपकीतो कैसे छपेंगी पर्चियां चुनाव कीपढ़ने में क्या रखा
है चराओ भेड़ बकरीचुप रहो .......................आज है २६ जनवरी- काका हाथरसी
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दलबदलू-मायारामदिन
दलबदलू-मायारामदिन - काका हाथरसी
दलबदलू-मायारामदिन दूनी बढ़ने लगी,
जोड़-तोड़ की होड़स्वार्थ ने सिद्धांत का,
दिया झोंपड़ा फोड़दिया झोंपड़ा फोड़,
मिल गए अधिक दाम जीमिस्टर आयाराम,
बन गए ‘गयाराम’ जीकाका,
बढ़ते-बढ़ते ऊंचे दाम हो गए‘गयाराम’ कुछ दिन में ‘मायाराम’ हो गए।
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चन्द्रमा
चन्द्रमा – काका हाथरसी
काका हाथारासी'ल्यूना-पन्द्रह' उड़ गया,
चन्द्र लोक की ओरपहुँच गया लौटा नहीं मचा विश्व में शोरमचा विश्व में शोर,
सुन्दरी चीनी बालारहे चँद्रमा पर लेकर
खरगोश निरालाउस गुड़िया की चटक-मटकपर भटक गया
हैअथावा 'बुढ़िया के चरखे' में अटक गया
हैकहँ काका कवि, गया चाँद पर
लेने मिट्टीमिशन फैल हो गया
हो गयी गायब सिट्टीपहुँच गए
जब चाँद पर, एल्ड्रिन, आर्मस्ट्रोंगशायर- कवियों की हुई काव्य कल्पना
'रोंग'काव्य कल्पना
'रोंग', सुधाकर हमने जानेकंकड़-पत्थर मिले,
दूर के ढोल सुहानेकहँ काका कविराय,
खबर यह जिस दिन आईसभी चन्द्रमुखियों पर
घोर निरशा छाईपार्वती कहने लगीं,सुनिए भोलेनाथ !
अब अच्छा लगता नहीं 'चन्द्र' आपके माथ'चन्द्र' आपके माथ,
दया हमको आती हैबुद्धि आपकी
तभी 'ठस्स' होती जाती हैधन्य अपोलो !
तुमने पोल खोल कर रख दीकाकीजी ने 'करवाचौथ' कैंसिल कर
दीसुघड़ सुरीली सुन्दरी दिल पर मारे
चोटचमक चाँद से भी अधिक कर दे
लोटम पोटकर दे लोटम पोट,
इसी से दिल बहलाएँचंदा जैसी चमकें,
चन्द्रमुखी कहलाएँमेकप करते-करते
आगे बढ़ जाती हैअधिक प्रशंसा करो चाँद पर चढ़ जाती
हैप्रथम बार जब चाँद पर पहुँचे दो इंसानकंकड़ पत्थर
देखकर लौट आए श्रीमानलौट आए श्रीमान,
खबर यह जिस दिन आईसभी चन्द्रमुखियों पर घोर निरशा छाईपोल खुली चन्दा की,
परिचित हुआ ज़मानाकोई नहीं चाहती अब चन्द्रमुखी कहलानावित्तमंत्री से मिले,
काका कवि अनजानप्रश्न किया क्या चाँद पर रहते हैं
इंसानरहते हैं इंसान,
मारकर एक ठहाकाकहने लगे कि तुम बिलकुल बुद्धू हो
काकाअगर वहाँ मानव रहते,
हम चुप रह जातेअब तक सौ दो सौ करोड़ कर्जा ले आत
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सोमरस पान - काका हाथरसी

सोमरस पान - काका हाथरसी
~*~*~*~*~*~*~*~
भारतीय इतिहास का,
कीजे अनुसंधान देव-दनुज-किन्नर सभी,
किया सोमरस पान किया सोमरस पान,
पियें कवि, लेखक, शायर जो इससे बच जाये,
उसे कहते हैं 'कायर' कहँ 'काका',
कवि 'बच्चन' ने पीकर दो प्याला दो घंटे में लिख डाली,
पूरी 'मधुशाला' भेदभाव से मुक्त यह,
क्या ऊँचा क्या नीच अहिरावण पीता इसे,
पीता था मारीच पीता था मारीच,
स्वर्ण- मृग रूप बनाया पीकर के
रावण सीता जी को हर लाया
कहँ 'काका' कविराय, सुरा की करो न निंदा
मधु पीकर के मेघनाद पहुँचा किष्किंधा
ठेला हो या जीप हो,
अथवा मोटरकार ठर्रा पीकर छोड़ दो,
अस्सी की रफ़्तार अस्सी की रफ़्तार,
नशे में पुण्य कमाओ जो आगे आ जाये,
स्वर्ग उसको पहुँचाओ पकड़ें यदि सार्जेंट,
सिपाही ड्यूटी वाले लुढ़का दो उनके भी मुँह में,
दो चार पियाले पूरी बोतल गटकिये,
होय ब्रह्म का ज्ञान नाली की बू,
इत्र की खुशबू एक समान खुशबू
एक समान, लड़्खड़ाती जब जिह्वा 'डिब्बा' कहना चाहें,
निकले मुँह से 'दिब्बा' कहँ 'काका' कविराय,
अर्ध-उन्मीलित अँखियाँ मुँह से बहती लार,
भिनभिनाती हैं मखियाँ प्रेम-वासना रोग में,
सुरा रहे अनुकूल सैंडिल-चप्पल-जूतियां,
लगतीं जैसे फूल लगतीं जैसे फूल, धूल झड़ जाये
सिर की बुद्धि शुद्ध हो जाये,
खुले अक्कल की खिड़की प्रजातंत्र में बिता रहे
क्यों जीवन फ़ीका बनो 'पियक्कड़चंद',
स्वाद लो आज़ादी का
एक बार मद्रास में देखा जोश-ख़रोश बीस पियक्कड़ मर गये,
तीस हुये बेहोश तीस हुये बेहोश,
दवा दी जाने कैसी वे भी सब मर गये,
दवाई हो तो ऐसी चीफ़ सिविल सर्जन ने केस कर दिया
डिसमिस पोस्ट मार्टम हुआ, पेट में निकली 'वार्निश'
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कंट्रोल बनाम ब्लैककरते
कंट्रोल बनाम ब्लैक - काका हाथरसी
कंट्रोल बनाम ब्लैककरते हैं वे घोषणा,
बजा-बजाकर ढोलमूल्य अगर बढ़ते रहे,
कर देंगे कंट्रोलकर देंगे कंट्रोल
यही तो चाहे ‘लाला’धन्यवाद दें तुम्हें,
गले में डालें मालाकहं ‘काका’,
कर जोड़ प्रार्थना करता बंदाकरो नियंत्रण
तो चालू हो जाए धंधाधक्का देकर धर्म को,
धन की माला फेरचीनी बेची ब्लैक में,
छह रुपए की सेरछ्ह रुपे की सेर,
पकड़ थाने पहुंचाएकेस लड़ाए पांच सौ जुर्माना दे
आएकहं ‘काका’ जब हानि-लाभ का खाता
छांटादस हजार बच रहे, रहा क्या हमको घाटा।
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काका हाथरसी जी- काका से क्षमायाचना सहित)
प्रभू मेरे मै नहीं रिश्वत खाईन्जबरण
नोट भरे पाकिट में , करके हाथापाई। मोहि फंसाइके,सफा निकसि गयॊ,सेठ बड़ो हरजाई।भोजन-भजन न कछू सुहावै, आई रही उबकाई।देउ दबाय केस को भगवन, कर लो आध बटाई।कहं काका तब बिहंसि प्रभू ने, लियो कंठ लपटाई।प्रभू मेरे मैं नहीं रिश्वत खाई। -कवि स्वर्गीय काका हाथरसी जी- काका से क्षमायाचना सहित)
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जलेबी

जलेबी - काका हाथरसी
आए जब इंगलैंड से भारत - विलियम डंग,
खा कर गरम जलेबियाँडंग रह गए दंग,
बोले, "इसे कैसे बनाता,ताज्जुब है
रस भीतरकैसे घुस जाता"?
,बैरा बोला, "साहब,इसे आरटिस्ट बनाते,
बन जाती तो,इंजेक्शन से रस पहुँचाते।
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दादा पत्रकार - काका हाथरसी
दादा पत्रकार - काका हाथरसी
पत्रकार दादा बने,
देखो उनके ठाठ,
कागज का कोटा झपट,
करे एक के आठ।करे एक के आठ,
चल रही आपाधापी,
दस हजार बतलायँ,
छपें ढाई सौ कापी।
विज्ञापन दे दो तो जय-जयकार कराएँ,
मना करो तो उल्टी-सीधी न्यूज छपाएँ।
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दाढ़ी महिमा - काका हाथरसी

दाढ़ी महिमा - काका हाथरसी
काका‘दाढ़ी राखिए,
बिन दाढ़ी मुख सूनज्यों मंसूरी के बिना,
व्यर्थ देहरादूनव्यर्थ देहरादून,
इसी से नर की शोभादाढ़ी से ही प्रगति कर गए
संत बिनोवामुनि वसिष्ठ
यदि दाढ़ी मुंह पर नहीं रखातेतो
भगवान राम के क्या वे गुरू बन जातेशेक्सपियर,
बर्नार्ड शॉ, टाल्सटॉय, टैगोरलेनिन,
लिंकन बन गए जनता के सिरमौरजनता के सिरमौर,
यही निष्कर्ष निकालादाढ़ी थी,
इसलिए महाकवि हुए ‘निराला’कहं ‘काका’,
नारी सुंदर लगती साड़ी सेउसी भांति नर की शोभा होती दाढ़ी से।
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तुम डार-डार, हम पात-पात

तुम डार-डार, हम पात-पात _ काका हाथरसी
महालेखापरीक्षक की रपट है गूढ़ ऐसी
गीता के श्लोक-जैसी।
पकड़कर वाक्य या श्लोक एक
अर्थ निकाल लीजिए अनेक।
राजीव को विपक्षी दोषी मान रहे हैं
पक्षी, पंखों का छाता तान रहे हैं।
बचाव की अहम् भूमिका निभा रहे हैं
कांग्रेसी संत
भगत जी और पंत।
वी.पी.सिंह दहाड़ रहे हैं,
देवीलाल मिसमिसा रहे हैं,
रामाराव विश्वामित्र बनकर
शाप देने आ रहे हैं।
क्या होगा भगवान
व्याकुल है धरती, आकुल है अंबर
जजमैंट देंगे मिस्टर दिसंबर।
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आरती इक्कीसवीं सदी की

इक्कीसवीं सदी, मेरी मइया इक्कीसवीं सदीऽऽ,
तरस रहे तेरे स्वागत को ताल-तलैया-नदी।
हत्या-हिंसा-नफरत के आँसू बहते जिनमें,
तुम आओ तब, होय प्रवाहित अमृतरस उनमें।
‘काका’ करे आचमन तो भौंरा-से भन्नाए,
होय बुढ़ापा दूर, जवानी सन-सन सन्नाए।
नई जवानी, नई रवानी, नवजीवन पाएँ,
नई उमर की नई फसल की, काकी ले आएँ।
नागिन-सी लट लटकें चमकें हीरा-से झुमके,
काव्य-मंच पर श्रीदेवी-जैसे मारें ठुमके।
तीन ग़ज़ल, दो गीत नए काका से ले लेंगी,
कवयित्री बनकर, लाखों के नोट बटोरेंगी।
नहीं करेंगे हम कोई पैदा बच्चा-बच्ची,
सफल होय परिवार-नियोजन, नींद आए अच्छी
फिर भी बालक चाहें, तो विज्ञान मदद देगा,
कम्प्यूटर का बटन दबाओ, बच्चा निकलेगा।
गाँव-गाँव में स्थापित हों,स्वीस बैंक ऐसे,
चाहो जितने जमा करो, दो नंबर के पैसे।
किसका कितना धन है कोई बता नहीं पाएँ
मार-मारकर सर, सब आई.टी.ओ.थक जाएँ।
यह आरती अगर लक्ष्मी का उल्लू भी गाए,
प्रधानमंत्री का पद उसे फटाफट मिल जाए।
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हास्य वर्णमाला

हास्य वर्णमाला
-अनार-
खाकर एक अनार को आएं बीस डकार
हो जाते हैं एक से, अच्छे सौ बीमार,
अच्छे सौ बीमार, मधुर मोती से दाने
कर देते हैं दूर रोग सब नए-पुराने
अन्ननास, अमरुद्ध और अंगूर लाइए
मित्र मंडली संग खाइए, गीत गाइए
हो जाते हैं एक से, अच्छे सौ बीमार,
अच्छे सौ बीमार, मधुर मोती से दाने
कर देते हैं दूर रोग सब नए-पुराने
अन्ननास, अमरुद्ध और अंगूर लाइए
मित्र मंडली संग खाइए, गीत गाइए
-आम-
आम चूसिए प्रेम से, अद्भुत इनका स्वाद
जिसने इनको बनाया उसको दाद दीजे उसको दाद,
दीजे उसको दाद, कचालू और रतालू
सब सब्जी का बाप बताया जाता आलू
कलमी-फज़ली आम दशहरी मन को भाएं
ओलम्पिक में लंगड़ा लम्बी दौड़
जिसने इनको बनाया उसको दाद दीजे उसको दाद,
दीजे उसको दाद, कचालू और रतालू
सब सब्जी का बाप बताया जाता आलू
कलमी-फज़ली आम दशहरी मन को भाएं
ओलम्पिक में लंगड़ा लम्बी दौड़
-इमली-
इमली खट्टी देखकर फड़के जिव्हा होंठ
चीनी इसमें डालिए, बन जाएगी सोंठ,
बन जाएगी सोंठ, साथ हो गर्म कचौड़ी
दह बड़े के साथ, सुहाती सुघर पकौड़ी
करलीजे स्वीकार, कभी इंकार न करिए
सीमित भोजन करो, अधिक खाने से
चीनी इसमें डालिए, बन जाएगी सोंठ,
बन जाएगी सोंठ, साथ हो गर्म कचौड़ी
दह बड़े के साथ, सुहाती सुघर पकौड़ी
करलीजे स्वीकार, कभी इंकार न करिए
सीमित भोजन करो, अधिक खाने से
-ईख-
ईख खड़ी हो खेत में, डगमग हो ईमान
तोड़ तोड़कर चूसते, बच्चे और जवान,
बच्चे और जवान, बड़े बूढे ललचाते
रस गन्ने का देकर उनकी प्यास बुझाते
इसके द्वारा चीनी गुड़ शंकर बन जाएं
देशी और विदेशी इसकी महिमा गाएं
तोड़ तोड़कर चूसते, बच्चे और जवान,
बच्चे और जवान, बड़े बूढे ललचाते
रस गन्ने का देकर उनकी प्यास बुझाते
इसके द्वारा चीनी गुड़ शंकर बन जाएं
देशी और विदेशी इसकी महिमा गाएं
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पंचायती राज
पंचायती राज - काका हाथरसी
गाँव-गाँव में होय अब, पंचायत के राज,
काका कवि तो खुश हुए, काकी जी नाराज।
काकी जी नाराज फैसला गलत किया है,
महिलाओं को सिर्फ तीस परसैंट दिया है।
अर्धांगिनि है नारि, उन्हें समझाना होगा,
फिफ्टी-फिफ्टी आरक्षण दिलवाना होगा।
पंचायत स्वर्णिम सपन, जब तक हो साकार,
तब तक जाने कौन-सी आएगी सरकार।
आएगी सरकार, अगर जनता दल आया,
बने बनाए पंचमहल का करें सफाया।
सत्ता को अपना कर्त्तव्य निभाना चाहिए,
है विपक्ष सिद्धांत, उसे लुढ़कना चाहिए।
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हँसी के गुब्बारे

हँसी के गुब्बारे
प्रश्न पुलिंदा-1 _ काका हाथरसी
‘पधारिए श्रीमती काकी, हाँफ क्यों रही हो, मैडम ?’
‘एक सप्ताह की डाक का पुलिंदा लादकर लाए हैं हम, उठाकर तो देखो ?’
‘उठाकर तो तुमने देख लिया, हमको तो सुनाती चलो,
किसने क्या लिखा है, टेप रेकार्डर स्टार्ट कर दो।
हम उत्तर देते चलेंगे, टेप होते रहेंगे।
टाइपिस्ट आएगा, टाइप कर देगा।’
‘लेकिन यह मुसीबत क्यों पाल रखी है आपने ?’
‘मुसीबत मत समझो इसको डियर,
हम प्रश्नों के उत्तर कविता में देकर पाठकों की शंका करेंगे क्लियर,
फिर यह विविध भारती द्वारा प्रसारित होकर सारी दुनिया में फैल जाएँगे।
प्रश्नकर्ता प्रसन्न होकर हमारी-तुम्हारी जै-जैकार मनाएँगे।’
‘अच्छा जी, हो गई जै जैकार, तो सुनो यह पहिला प्रश्न है मेरठ से श्री...
‘ठहरो प्रश्नकर्ता का नाम -पता तो उसके पात्र में ही रहने दो,
तुम सिर्फ प्रश्न बोलती चलो, हम उत्तर देते चलें।’
‘एक सप्ताह की डाक का पुलिंदा लादकर लाए हैं हम, उठाकर तो देखो ?’
‘उठाकर तो तुमने देख लिया, हमको तो सुनाती चलो,
किसने क्या लिखा है, टेप रेकार्डर स्टार्ट कर दो।
हम उत्तर देते चलेंगे, टेप होते रहेंगे।
टाइपिस्ट आएगा, टाइप कर देगा।’
‘लेकिन यह मुसीबत क्यों पाल रखी है आपने ?’
‘मुसीबत मत समझो इसको डियर,
हम प्रश्नों के उत्तर कविता में देकर पाठकों की शंका करेंगे क्लियर,
फिर यह विविध भारती द्वारा प्रसारित होकर सारी दुनिया में फैल जाएँगे।
प्रश्नकर्ता प्रसन्न होकर हमारी-तुम्हारी जै-जैकार मनाएँगे।’
‘अच्छा जी, हो गई जै जैकार, तो सुनो यह पहिला प्रश्न है मेरठ से श्री...
‘ठहरो प्रश्नकर्ता का नाम -पता तो उसके पात्र में ही रहने दो,
तुम सिर्फ प्रश्न बोलती चलो, हम उत्तर देते चलें।’
प्रश्न : काका जी से मैं पूछना चाहता हूँ कि यदि आपको बुढ़ापे के बाद एकदम छोटा-सा बालक बना दिया जाए तो क्या होगा ?
उत्तर : इस जीवन को पूरा करके जन्म दुबारा ले लूँगा,
मम्मी जी का मिल्क पिऊँगा, गिल्ली डंडा खेलूँगा।
नित्य नियम से बस्ता लेकर जाऊँगा मैं पढ़ने को
ओलंपिक में पहुँचूँगा मल्लों से कुश्ती लड़ने को।
हँसी खुशी के गीत सुनाकर सबका मन बहलाऊँगा,
इसी कला से काका वाला पुरस्कार पा जाऊँगा।
मम्मी जी का मिल्क पिऊँगा, गिल्ली डंडा खेलूँगा।
नित्य नियम से बस्ता लेकर जाऊँगा मैं पढ़ने को
ओलंपिक में पहुँचूँगा मल्लों से कुश्ती लड़ने को।
हँसी खुशी के गीत सुनाकर सबका मन बहलाऊँगा,
इसी कला से काका वाला पुरस्कार पा जाऊँगा।
प्रश्न : सफल हुआ उद्देश्य आपका, हँसने और हँसाने का किस दिन अवसर पाया था, काकी से बेलन खाने का ?
उत्तर : बेलन में गुन बहुत हैं कैसे तुम्हें बतायँ,
स्वाद चाखना होय तो कभी हाथरस आयँ।
कभी हाथरस आयँ, उपाय और है दूजा
अपने ही घर में करवा लो बेलन पूजा।
क्वांरे हो तो बहू मरखनी लेकर आओ
फिर कविताएँ लिखो धड़ाधड़ कवि बन जाओ।
स्वाद चाखना होय तो कभी हाथरस आयँ।
कभी हाथरस आयँ, उपाय और है दूजा
अपने ही घर में करवा लो बेलन पूजा।
क्वांरे हो तो बहू मरखनी लेकर आओ
फिर कविताएँ लिखो धड़ाधड़ कवि बन जाओ।
प्र.-इंसान को बलवान बनने के लिए क्या करना चाहिए ?
उ.-भ्रष्टाचारी टॉप का, वी.आई.पी.के ठाठ,
इतनी चौड़ी तोंद हो, बिछा लीजिए खाट।
प्र.-मध्यावधि चुनावों में काँग्रेस (आई) की जीत का क्या कारण है ?
उ.-कुर्सी लालच द्वेष की, लूटम फूट प्रपंच,
बंदर आपस में लड़ें, बिल्ली छीना मंच।
प्र.-लेकर कलम जो बैठा, तो भूल गया सब, वरना मुझे कुछ आपसे, कहना ज़रूर था ?
उ.-कुछ फिक्र नहीं, अपनी बात भूल गए तुम,
हैं आप उधर चुप, तो इधर हम भी हैं गुमसुम।
प्र.-इंसान जब ठोकर खाता है तो क्या करता है ?
उ.-खाते-खाते ठोकरें, बिगड़ गई जब शक्ल,
संभल गए, तब लौटकर वापिस आई अक्ल।
प्र.-मनुष्य कितना ही अच्छा हो, उसमें दोष निकालने वाले क्यों पैदा हो जाते हैं।
उ.-मानव की तो क्या चली, बचा नहीं भगवान,
उसके निंदक देख लो, हैं नास्तिक श्रीमान्।
प्र.-काकाजी, मैं आपको दावत पर बुलाना चाहता हूँ ?
उ.-‘मीनू’ में क्या चीज है, बतलाओ यह बात,
कितनी दोगे दक्षिणा, दावत के पश्चात्।
प्र.-मौत और सौत में क्या फ़र्क है काका ?
उ.-मौत अच्छी फ़क़त इक बार मरने पर जलाती है,
सौत है मौत से बदतर, ज़िंदगी भर जलाती है।
प्र.-.-देवानंद कहते हैं ‘जॉनी मेरा नाम’। राजकपूर कहते हैं ‘मेरा नाम जोकर’ तो आप क्या कहते हैं ?
उ.-‘काका’ काका ही रहें, हुआ नाम सरनाम,
दलबदलू की तरह हम, क्योंकर हों बदनाम।
प्र.-नारी की दृष्टि में पुरुष क्या है ?
उ.-कार की दृष्टि में ड्राइवर, जनता पार्टी में चंद्रशेखर,
उसी प्रकार समझ लो मिस्टर, नारी की दृष्टि में है नर।
प्र. बैलबॉटम (सड़क झाड़ती) के बाद अब कौन-सा फैशन आएगा ?
उ.-बाबू बाँधे साड़ियाँ, बीबी पहिनें पैंट,
बीबीजी अफसर बनें, बाबू जी सरवैंट।
प्र.-इंसान छुटपन में बालक, जवानी में युवा, तो बुढ़ापे में ?
उ.-बूढ़ेपन में बुढ़उ बन, करें प्रभु का ध्यान,
या मुरारजी की तरह, ‘जीवन जल’ का पान।
प्र.-वैरी गुड लाइफ़, विद-आउट वाइफ़, आपकी एडवाइस ?
उ.-वाइफ़ से लाइफ़ बने, बिन वाइफ़ सुनसान,
नहीं किराए पर मिले, उसको कहीं मकान।
प्र.-नेता जब चारों ओर से निराश हो जाए तो ?
उ.-सत्ता से पत्ता कटे, हो करके असहाय,
भाषण देकर विरोधी, जनता को बहकाय।
प्र.-मेरी इच्छा हेमामालिनी से शादी करने की थी, किंतु उसे धर्मेन्द्र ले गए। अब क्या करूँ काका ?
उ.-छोड़ी जो धर्मेन्द्र ने, उसे पटालो यार,
बिना परिश्रम मुफ्त में, बच्चे पाओ चार।
प्र.-राजनारायण का दाढ़ी का एक बाल मुझे दिला सकते हैं ?
उ.-दाढ़ी की गाड़ी गिरी, बाल हुआ बेकार,
यदि तुमने मँगवा लिया, मिले हार पर हार।
प्र.-एक लड़की मेरी दुकान के सामने से गुजरती है तो मुसकरा देती है क्यों ?
उ.-उल्लूजी उल्लू बनें, लल्ली जब मुसकात,
जाय अँगूठा दिखाकर, जब आ जाए बरात।
प्र.-अगर लड़की चाँदनी चौक है तो लड़का ?
उ.-सीधा-सा यह प्रश्न है, नोट करो उत्तर्र,लली चाँदनी चौक है,
लल्ला घंटाघर्र।
प्र.-चार सौ की नौकरी में गृहस्थी की गुजर नहीं होती, रेलवे में काम करता हूँ, क्या करूँ ?
उ.-थ्री टायर की कोच के टी.टी.ई. बन जाउ,
मौज उड़ाओ रात दिन, इतने नोट कमाउ।
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