दाढ़ी महिमा - काका हाथरसी


दाढ़ी महिमा - काका हाथरसी

काका‘दाढ़ी राखिए,


बिन दाढ़ी मुख सूनज्यों मंसूरी के बिना,


व्यर्थ देहरादूनव्यर्थ देहरादून,


इसी से नर की शोभादाढ़ी से ही प्रगति कर गए


संत बिनोवामुनि वसिष्ठ


यदि दाढ़ी मुंह पर नहीं रखातेतो


भगवान राम के क्या वे गुरू बन जातेशेक्सपियर,


बर्नार्ड शॉ, टाल्सटॉय, टैगोरलेनिन,


लिंकन बन गए जनता के सिरमौरजनता के सिरमौर,


यही निष्कर्ष निकालादाढ़ी थी,


इसलिए महाकवि हुए ‘निराला’कहं ‘काका’,


नारी सुंदर लगती साड़ी सेउसी भांति नर की शोभा होती दाढ़ी से।